धार्मिक
नगरी अयोध्या में हर रोज़ हज़ारो लोग दर्शन और पूजन कर पुण्य कमाने आते हैं। पावन सलिला
सरयू में डुबकियां लगाकर अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते हैं। और अपने आप को पवित्र
करते हैं। लेकिन इसी अयोध्या के सरयू तट के किनारे समाज का एक स्याह पहलू भी नज़र
आता है। जहां दर्जनों मासूम बच्चे पेट की आग बुझाने के लिए अपने बचपन की ख्वाहिशों
का गला घोट कर दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद में लगे रहते हैं।
धर्म नगरी अयोध्या के सरयू तट के किनारे दर्जनों ऐसे
मासूम बच्चे हैं जो जान जोखिम में डाल कर नदी से पैसे निकालने और नाव चलाने का काम
करते है। पूरे दिन नदी से सिक्के ढूँढने की कोशिश जारी रहती है और पूरे दिन की मेहनत के बाद जब शाम को चंद सिक्के
हाथो में आते है तो इन्ही सिक्कों से शाम की रोटी का जुगाड़ हो पाता है। सरयू की
पवित्र धारा से सिक्के निकालने वाले तमाम बच्चे तो ऐसे है जिन्हें न तो स्कूल के
बारे में पता है और न ही किताबों के उनके लिए तो सरयू की लहरें ही उस किताब की तरह
है जिसने उन्हें समाज में गरीबी के अभिशाप की कड़वी
सच्चाई से रूबरू कराया है। नदी
में नाव चलाने और सिक्के निकालने का जोखिम भरा काम करने वाले ये मासूम अपनी मर्जी
से ये काम नहीं करते बल्कि परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए ये काम करने को
मजबूर है। ये मासूम भी स्कूल जाना चाहते है। पढ़ना चाहते है। कुछ बनना चाहते है।
लेकिन इनके माँ बाप के पास इतने पैसे नहीं की वो इन्हें स्कूल भेज सके और इसी
मजबूरी के चलते ये मासूम अपना बचपन पेट की आग में जला रहे है ।
परिवार की मजबूरियों तले अपना बचपन खो रहे इन मासूम को नहीं पता की
जिस पवित्र सरयू में एक डुबकी लगा लेने से लोगो के जन्म-जन्मान्तर के पाप कट जाते
है। उसी सरयू में दिन भर डूबे रहने के बाद भी उन्होंने ऐसा कौन सा पाप किया है
जिसके कारण उन्हें मुफलिसी और गरीबी की आग में अपना बचपन जलाना पड़ रहा है।

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