बुधवार, 13 जून 2012

लव- कहीं खुशी – मैरिज- कहीं गम

एक समय था जब राजा महाराजा निकलते थे लड़ाई या आखेट के लिए और रास्ते में मिलने वाली किसी सुन्दर कन्या को अपनी महारानी बनाकर ले आते थे। पहली बार निगाह मिलते ही दोनो एक दूसरे को दिल दे बैठते थे।
वहीं दूसरी तरफ आज के हमारे इस समाज के लड़के, लड़कियाँ भी प्यार तो करने में अव्वल है परन्तु उसे आजीवन निभा पाने में पीछे है। क्योकि वे प्यार तो करते है परन्तु उसका सही अर्थ वे अपने जीवन में कभी नही समझ पाते, अधिकतर तो प्यार को सिर्फ अपना स्टेटस सिम्बल ही मानते हैं

अंग्रेजी हमारी जरुरत है या मजबूरी?

आपने वह कहावत तो सुनी ही होगी, अंग्रेजी भारत से चले गये पर अंग्रेजी छोड़ गये। जी हाँ! आज हमें आजाद हुए लगभग 64 साल से अधिक बीत चुके हैं। हम उन अंग्रेजो को भी भूल गये जिन्होने हमें गुलाम बना रखा था, पर नही भूले तो उनकी दी हुयी भाषा अंग्रेजी, जिसे बोलने पर आज हम गर्व करते है। और उसकी जगह अपनी मातृ भाषा को धीरे-धीरे हम भूलते जा रहे है। क्या आपको नही लगता यह सब सिर्फ दिखावा और खुद को हाई सोसायटी वाला दिखाने के लिये हम करते है। आज हम और आपसे कहते है कि अंग्रेजी के बिना हमारा कोई काम नही हो सकता क्योकि किताबों से लेकर कम्प्युटर तक सिर्फ अंग्रेजी ही काम करने के लिए आसान होती है। परन्तु आप ही सोचो कि इन किताबों और कम्प्युटर को बनाने वाला कौन है, ‘हमहम अगर चाहें तो इन्ही सब चीजों को हिन्दी जो कि हमारी मातृ भाषा है उस में बनाकर अपनी दिनचर्या में प्रयोग कर सकतें है, परन्तु हमारा स्टेटस सिम्बल हमें हमारी मातृ भाषा के नजदीक जाने से रोकता है। आपने तमाम सरकारी ऑफिसों, बैंको, प्राईवेट संस्थानो में बड़े-बड़े बोर्ड टंगे देखे होगें कि हिन्दी हमारी राज भाषा है कृपया हिन्दी में लिखा-पढ़ी करके हमें और खुद को गौरवान्वित करें। परन्तु ये सारे बोर्ड सिर्फ दिखावा मात्र ही है, उन पर हम कितना अमल करते है यह हमें आपको बताने की जरुरत नही है।
आज भी विश्व में अधिकतर देश ऐसे है जहाँ के लोग सिर्फ अपनी ही मातृ भाषा का प्रयोग अपनी दैनिक दिनचर्या में करते है और अन्य भाषाओं की जानकारी को वे सिर्फ अपने शौक के लिये इस्तेमाल करते है। परन्तु हम है कि अंग्रेजी को अपने दैनिक कार्यो में लाते है और हिन्दी को बोलना अपनी तौहीन समझते है।
कुल मिलाकर मेरा यह कहना है कि जिस प्रकार हम अंग्रेजी को अपने जीवन में उतारते चले जा रहे है वह दिन दूर नही जब हिन्दी की जगह अंग्रेजी हमारी मातृ भाषा होगी और हिन्दी का नामोनिशान हमारे देश से मिट जायेगा।
इसलिये हमें पूरी कोशिश करनी है कि अंग्रेजी हमारी सिर्फ जरुरत बने न कि मजबूरी।
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