शनिवार, 15 दिसंबर 2012

किछौछा शरीफ़ - महान सूफी हज़रत मखदूम अशरफ सिमनानी

पहले यह पवित्र स्थान फैज़ाबाद जनपद में था मगर अब अकबरपुर (अम्बेडकर नगर) ज़िले के अंतर्गत आता है। किछौछा शरीफ़ की ज़ियारत करने के लिए फैज़ाबाद और अम्बेडकर नगर दोनों स्थानों से परिवहन निगम की बस या अपनी सवारी से जाया जा सकता है। किछौछा बसखारी के निकट है, जहाँ हर धर्म हर मजहब के लोग अपनी-अपनी मुरादें पूरी कराने पहुंचते हैं। विदेशी भी काफी तादाद में वहाँ पहुँचते हैं। लोग बड़े आदर के साथ किछौछा-शरीफ़ को राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय एकता का केन्द्र मानते हैं।
जनाब असलम वसीम के अनुसार हज़रत मखदूम अशरफ़ सिमनानी का वास्तविक नाम ओहउद्दीन था। आप का जन्म 1387 ई० तदनुसार 707 हिजरी को सिमनान राज्य (ईरान) में हुआ था। उस समय सिमनान ईरान की राजधानी हुआ करती थी पर आज सिमनान ईरान का एक शहर है। आप के पिता का नाम खुदैजा बीबी था। उन्होने लगभग 35 वर्षों तक सिमनान राज्य पर हुकूमत की। सन 1399 में अपने पिता की मृत्यु के बाद आप ने 1348 में सिर्फ 13 वर्ष की अवस्था में सिमनान राज्य की सत्ता संभाली। 12 साल तक हुकूमत करने के बाद आपने अपने छोटे भाई को हुकूमत सौंप कर फ़कीरी ले ली। आप जीवन भर अविवाहित रहें। आपने अपनी आयु के तीस वर्ष पैदल ही विश्व यात्रा करते हुए सूफ़ी मत के सिद्धांतों और उपदेशों का प्रचार-प्रसार किया। आपके पीर (गुरु) हज़रत अलाऊलहक पंडवी थें (पंडवा पश्चिम बंगाल के मालदा ज़िले में पड़ता है।) निर्माण कराया था। आप लगभग सौ वर्ष तक जीवित रहें। आपका देहावसान 28 मोहर्रम 808 हिजरी तदनुसार सन 1487 को दोपहर 2 बजे हुआ था। आपने अपना उत्तराधिकारी व सज्जादा नशीन हाज़ी अब्दुर्ररज़्ज़ाक नुस्लेन्न को बनाया। किछौछा शरीफ का आस्ताना उत्तर प्रदेश के जनपद अम्बेडकर नगर (अक़बरपुर) तहसील टांडा के राजस्व ग्राम रसूलपुर दरगाह में स्थित है जो नगर पंचायत अशरफपुर किछौछा में शामिल है।
सुल्तान फ़िरोज़शाह के शासनकाल में हज़रत मखदूम अशरफ ने भारत की धरती पर अपने मुबारक़ कदम रखे थे। आप एक उच्च कोटि के साहित्यकार भी थे। उनकी लिखी पुस्तक एखलाक और तसब्बुफ को उर्दू गद्द्य की पहली पुस्तक मानी जाती है। उसके अलावा आपने सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक पुस्तकें भी लिखीं। मलिक मुहम्मद जायसी ने उन्हे अपना आध्यात्मिक गुरु मान कर अनेक रचनाएँ लिखीं। हज़रत मखदूम अशरफ के उपदेश आज भी हमारे समाज को एकता के सूत्र में बांध कर ज़िंदगी की राह आसान कर रहे हैं। यह हमारे फैज़ाबाद और पड़ोसी नए जनपद अम्बेडकर नगर (अक़बरपुर) के लिए फ़ख्र की बात है। यूँ तो फख्र की बात पूरे इंसानी क़ौम के लिए है।
(दैनिक जनमोर्चा से साभार : सुदामा सिंह) 

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

उपद्रवियों का कोई मजहब नहीं होता

फैज़ाबाद, 2 दिसम्बर 2012 ‘‘उपद्रवियों का कोई मजहब नहीं होता और साम्प्रदायिकता का कोई धर्म नहीं। सभी प्रबुद्ध नागरिकों को सद्भाव का प्रचार-प्रसार करना चाहिए। फैज़ाबाद की साम्प्रदायिक घटनाओं के बाद बुद्धिजीवियों में एक तरह की इख़लाकी पस्ती दिखायी पड़ती है। हमें इस निराशा से निकलकर धर्मनिरपेक्षता और सद्भाव के लिए संघर्ष करना चाहिए।’’ ये विचार स्थानीय तरंग सभागार में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित भारतीय परिवेश में सद्भावना और धर्मनिरपेक्षता की प्रासंगिकता और हमारे दायित्व विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए लेखक एवं संपादक आफताब रजा रिजवी ने व्यक्त किये। यह संगोष्ठी फैज़ाबाद में पिछले दिनों हुई साम्प्रदायिक घटनाओं के बरक्स सद्भाव और धर्मनिरपेक्षता के प्रचारप्रसार के लिए आयोजित की गयी थी।
      इससे पहले गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए सम्पूर्णानन्द बागी ने कहा कि हमारा देश अपनी प्रकृति में धर्मनिरपेक्ष है, मगर थोड़े से उपद्रवियों को चलते धर्मसमभाव का ताना-बाना अव्यवस्थित हो जाता है। शहर के जाने-माने शायर साहिल भारती ने कहा कि सद्भावना पैदा करना प्रशासन की भी ज़िम्मेदारी है जबकि प्रशासन ने ही फैजाबाद में लापरवाही दर्शायी है। युवा कवि विशाल श्रीवास्तव ने यह बताया कि साम्प्रदायिकता के तत्व भारतीय समाज में पहले से सक्रिय रहे हैं। वैश्वीकरण के प्रारम्भ होने के बाद फाँसीवाद का उदय बिल्कुल नये तरीके से हुआ है। मशहूर शायर इस्लाम सालिक ने कहा कि इन साम्प्रदायिक घटनाओं में प्रशासन भी शामिल हो जाता है जिससे साम्प्रदायिकता की योजनाबद्ध घटनाएँ और अफवाहें खतरनाक रूप ले लेती हैं। समाजवादी पार्टी के नेता और एडवोकेट मंसूर इलाही ने कहा कि साम्प्रदायिकता फैलाने वाले लोग कम हैं मगर उनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही नहीं होती जिसके कारण साम्प्रदायिक तत्वों का मन बढ़ जाता है। उन्हें सख्त सजा दिलायी जानी चाहिए। बस्ती से आये राजनारायण तिवारी ने फैज़ाबाद की घटनाओं को शर्मनाक बताते हुए कहा कि वैश्वीकरण के आने के साथ ही साथ साम्प्रदायिकता बढ़ी है। एटक के नेता जमुना सिंह ने बाजारवाद और उसकी संस्कृति को साम्प्रदायिकता के उभार के लिए जिम्मेदार माना।
      भारतीय प्रेस कौंसिल के सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार सम्पादक शीतला सिंह ने कहा कि 2012 की स्थितियाँ 1992 की स्थितियों से अधिक खतरनाक और निराशा पैदा करने वाली हैं। आज राजनीति साम्प्रदायिक विभाजन को बढ़ा रही है । दुख की बात यह है कि पढ़ा-लिखा समाज भी कम्युनल होता जा रहा है। शहर के जाने माने बुद्धिजीवी गुलाम मोहम्मद ने कहा कि हमारे दौर में अवांक्षित तत्व सबल होते जा रहे है। लोगों को तोड़ने वाले नहीं, जोड़ने वाले तत्वों का साथ देना चाहिए। शिक्षक नेता अशोक कुमार तिवारी ने फैजाबाद की घटनाओं को एक राजनीतिक साजिश बताते हुए सद्भावना और भाईचारे कायम रखने में सहयोग करने के लिए बुद्धिजीवियों को आगे आने के लिए कहा। राजनायण तिवारी ने कहा कि फैज़ाबाद की सारी घटनाओं के पीछे स्पष्टतः चुनावी राजनीति थी। युगलकिशोर शरण शास्त्री ने साझी संस्कृति और साझी विरासत को बचाने की बात कही।
      सुपरिचित पत्रकार सुमन गुप्ता ने कहा कि 1992 की घटनाओं के बाद लेाग निश्चिन्त हो गये कि भविष्य में फैज़ाबाद में साम्प्रदायिक घटनाएँ नहीं होंगी। मगर साम्प्रदायिकता नये तरीके से सामने आयी है। धर्म को अपने साथ लपेटने वाली राजनीति के तहत उपद्रवियों को सजा नहीं मिलती और उनका हौसला बुलन्द हो जाता है। कामरेड रामतीर्थ पाठक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वामपंथी हमेशा से साम्प्रदायिकता का विरोध करते रहे हैं। हर धर्म के प्रगतिशील बुद्धिजीवियों को धार्मिक विकृतियों और साम्प्रदायिकता का विरोध करना चाहिए। गोष्ठी का संचालन कर रहे डॉ रघुवंशमणि ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों को लेकर जनता के बीच जाने की आवश्यकता है।
      गोष्ठी मे यह संकल्प लिया गया कि साम्प्रदायिक सद्भाव के ये कार्यक्रम दूर-दराज के गांवों तक ले जाये जायेंगे। गोष्ठी के अन्त में भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के महासचिव रामजीराम यादव ने गोष्ठी में आये अतिथियों को धन्यवाद देते हुए आभार व्यक्त किया। गोष्ठी में कामरेड अतुल कुमार सिंह, कामरेड रामप्रकाश तिवारी, हृदयराम निषाद, इर्तिजा हुसैन, सईद ख़ान, अयोध्या प्रसाद तिवारी, रामकुमार सुमन, बद्रीनाथ यादव, महंथ दिनेश दूबे, मुन्नालाल सहित सैकड़ों लोग उपस्थित थे।

रविवार, 2 दिसंबर 2012

विश्व एड्स दिवस पर जानिये एच.आई.वी./एड्स के मनोदुष्प्रभाव

विश्व एड्स दिवस पर जानिये एच.आई.वी./एड्स के मनोदुष्प्रभाव : "पोस्ट डायग्नोसिस डिप्रेशन " व "एड्स डिमेंशिया" ‘विश्व एड्स दिवस’ पर ‘एच.आई.वी./एड्स’ के शारीरिक लक्षणो एवं बचाव के तौर तरीको की प्रचार-प्रसार माध्यमो से भरमार देखने को मिलती है | लेकिन इस बीमारी के छिपे-रुस्तम व अनछुए मनोदुष्प्रभाव को मरीज़ तथा उसके परिजनों को जागरूक करने के उद्देश्य से मनदर्शन-मिशन द्वारा उजागर कर दिया गया है | भारत की पहली टेलीफोनिक साइकोथिरैपी सेवा +919453152200 शुरू करने वाली ‘मनदर्शन-मिशन’ के अनुसार सामान्यतयः, मानसिक विछिप्त या मनोरोगी उसके मष्तिष्क के मनोरसायानो ( न्यूरो-ट्रांसमीटर्स ) में उत्पन्न असंतुलन का परिणाम होते है | परन्तु, एच.आई.वी./एड्स के मरीजो में इस वायरस के उनके मस्तिस्क में प्रवेश कर जाने से उनकी सामान्य मानसिक प्रक्रियाये इस प्रकार दुष्प्रभावित हो जाती है जिससे कि वे पागलपन जैसी असामान्य स्थिति में आ सकते है | इसे "एड्स डिमेंशिया" कहते है | साथ ही एच.आई.वी./ एड्स का मरीज़ एच.आई.वी. जाँच के पॉजिटिव आते ही उसके मन में "सेकेंडरी डिप्रेशन" या "पोस्ट डायग्नोसिस डिप्रेशन" (पी.डी.डी.) आ जाने की प्रबल संभावना हो जाती है जिससे कि उसका मन अपराध बोध,हताशा,निराशा व कुंठा जैसे नकारात्मक मनोभावों से घिर सकता है | मरीज़ को इस अवसाद ग्रसित मनोदशा से निकालने के लिए डॉ. मनदर्शन ने एच.आई.वी./ एड्स पीड़ित मरीज़ की समाज में पूर्ण स्वीकार्यता एवं भावनात्मक प्रोत्साहन पर विशेष जोर दिया है जिससे कि मरीज़ का पुनः मनोसामाजिक पुनर्वास हो सके और वह आत्मसम्मान के साथ समाज की मुख्य धारा में समाहित होकर अपने मनोशारीरिक उपचार में सकारात्मक ढंग से सहयोग कर सके |

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

आतंक------------------ यानी फांसी


मुम्बई हमले के आरोपी पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब को तो हमने फांसी दे दी पर अपने ही देश में रह रहे उन आतंकियों हम कब फांसी देंगे जो आये दिन अपने ही देश में अपना आतंक फैलाते हैं जिसकी वजह से देश के अमन पसंद आम नागरिकों का जीना अपने ही देश में दूभर  होता है.
क्या किसी व्यक्ति द्वारा सिर्फ सामूहिक नरसंहार वह चाहे जिस रूप में हो , ही किया जाना आतंकवाद है ? हाँ ! परन्तु उसके साथ साथ अपने पैसे के बल पर व अपने ताकत के बल पर एक आम आदमी को परेशान करना जिसमे हत्या , लूट , बलात्कार , डकैती , भयभीत करना , आदि अपराध भी किसी आतंक से कम नही है , परन्तु हमारे देश का लचर कानून अपनी वेवजह की लाचारी के चलते ऐसे आतंकियों को फांसी पर लटकाने से पता नही क्यों पीछे हटता है !
आज हमारे देश में ही कितने ऐसे आतंकी है जो खुले आम अपनों को ही अपने साये में जीने को मजबूर कर रहे है , जिसके कारण हमारे देश के नागरिकों में अपने ही घर में असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है .
हमारे देश की बिभिन्न अदालतों द्वारा आज तक पता नही कितने आतंक फैसले वालों को फंसी की सजा सुनाई जा चुकी है परन्तु फंसी पर आज तक कोई लटकाया नही गया क्योंकि किसी न किसी कारण वश वह बाइज्जत बरी हो गया या फिर उसकी सजा विचाराधीन हो गयी.
मेरे अनुसार विदेशी आतंकी और देशी आतंकी में सिर्फ इतना फर्क है की विदेशी आतंकी लगभग साल - दो साल में एक साथ सैकड़ो बेगुनाहों को मरता है और देशी आतंकी रोज पूरे देश में अलग - अलग जगहों पर सैकड़ों बेगुनाहों को मारता है.
अब आप ही बताइये की दोनों में क्या फर्क है ?
अगर हमें अपने देश में विदेशी आतंकियों को रोकना है तो हमें सबसे पहले अपने देश के आतंकियों ( वो चाहे छोटा आतंक फैलाता हो या बड़ा ) को फांसी पर लटकाना होगा जिससे हमारे कानून  की इस कड़ाई से देश में रहने वाले आतंकियों के साथ - साथ विदेशी आतंकियों को भी एक बार आतंक फैलाने से पहले सौ बार सोंचना पड़े.
इसमें कोई संदेह नही की यह सबसे कठोर दंड है लेकिन इस दंड को बिना देरी के दिया जाना चाहिए अगर इसमें देरी होती है तो इसका जो सख्त सन्देश है वह अपराधी व अपराधी की मानसिकता के लोगों तक नही पहंच पायेगा.
मेरा मानना है की आज अगर हम अपने घर के आतंकियों से अपने घर को सुरक्षित रखने में कामयाब हो जाते है तो विदेशी कसाब जैसों को हमारे घर पर निगाह उठाने से पहले लटकता हुआ फांसी का फंदा जरूर नजर आयेगा जो उनके दिलों दिमाग से हमारे देश का नाम मिटाने पर उनको मजबूर करेगा .

बुधवार, 28 नवंबर 2012

चाइना---------- मतलब नो गारंटी


कहाँ  कुछ दिन पहले तक हम अपने बाज़ार में बिकने वाले हर सामान की गारंटी लिए बिना सामान नही खरीदते थे. वहीँ आज हम चायनीज सामान को बिना गारंटी के खरीद में एक मिनट भी देर नही करते आखिर  क्यों ?
आज भारतीय बाज़ार में चीन का दबदबा इतना बढ़ चुका है की हम उसे ही पसंद कर रहे है . जहाँ एक तरफ रोजाना भारत व चीन के रिश्तों में कहीं न कहीं खटास पड़ती दिखती है पर खिलौने व इलेक्ट्रोनिक के बाज़ार में चीन भारत में अपना पैर जमाता जा रहा है.
आखिर आज हमारे दिलो दिमाग से गारंटी नाम के शब्द की जगह क्यों समाप्त होती जा रही है . एक समय था कि हम बाज़ार से सामान लेते वक्त उसे ठोंकते बजाते साथ दुकानदार से उसके लम्बे समय चलने की गारंटी भी लेते.
परन्तु आज न हम चायनीज सामान को ठोंकते बजाते है न ही उसके गारंटी की इच्छा जाहिर करते है क्योंकि हम रोजाना निकलते नए फैशन के चलते नये सामान को खरीदने की इच्छा व छमता रखते है .
पर हमें एक बात जरूर  याद  रखनी चाहिए की  अच्छी कम्पनी का गारंटी वाला सामान ही हमारे लिए बेहतर है जबकि नो गारंटी वाला चायनीज सामान सिर्फ हमारे पैसे की बरबादी है और कुछ छाड़ की अंधी चमक जिसकी रौशनी सिर्फ चीन में ही दिखाई देती है .
आज चीन भारत में अपना इस तरह का ब्यापार फैलाकर खुद तो अंधा पैसा कमा रहा है वहीँ भारतियों को आंतरिक रूप से ख़ासा चूना लगा रहा है.
भारत सरकार को चाहिए की चाइना बाज़ार के इस ब्यापार को गारंटी प्रदान कराए जिससे  भोले भाले भारतीयों को चाइना की नो गारंटी की वजह से खुद को ठगा सा न महसूस करना पड़े.

रविवार, 25 नवंबर 2012

फ़ैज़ाबाद में मोहर्रम (यौमे अशरा)

हज़रत मोहम्मद सललाहे-अल्ले-वसल्लम के नवासे जनाब हसन और हुसैन की शहादत वाकई में क़ाबिले अक़ीदत है। हर साल जब मुहर्रम का गमज़दा महीना आता है तो तवारीख के गमज़दा पन्नों की भी आँखें छलक पड़ती हैं। ज़ुलमियों ने न सिर्फ हसन और हुसैन को बल्कि उनके पूरे खानदान के अनबोलते बच्चों तक को प्यासा रखते हुए मौत के घाट उतारा। हमारा फैज़ाबाद में पूरे मोहर्रम माह मे राठहवेली के जवाहरअली के इमामबाड़े, नवाब शुजाऊदौला की मनपसन्द गुलाबबाड़ी और बहू बेगम साहिबा के मक़बरे के साथ जगहों-जगहों पर लोग मजलिसों मे हिस्सा लेकर अपनी अक़ीदत पेश करते हैं क्योकि सच्चाई के लिए उन्होने कुर्बानी दी थी जो एक नायाब मिसाल है। इस मौके पर हमारे फैज़ाबाद के, और बाहर के गैर-मुस्लिम भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते देखे जाते हैं।

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

आधुनिक युग में धार्मिक संकीर्णता

रामराज्य के पैरोकारों से अनुरोध है कि संकुचित भावना को छोड़ कर व्यापक बनें क्योंकि एक कल्याणकारी राज्य में प्रत्येक धर्म और जाति के लोगों रहने का हक़ होता है फिर अयोध्या की सीमा में मस्ज़िद न बनने की बात करना रामराज्य को बदनाम करना है। बहुत संकीर्ण विचार का सबूत है।

बुधवार, 14 नवंबर 2012

“खतरे में बचपन” बढ़ रही है उद्दंड व फिसड्डी बच्चो की भीड़

गर्भकालीन-तनाव का नतीजा : उद्दंड व फिसड्डी बच्चे। 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' उद्दंड, फिसड्डी व अराजक बच्चो की भीड़ बढ़ रही है | इसके पीछे माताओं का गर्भ काल में अति अवसाद में रहता है। ऐसे बच्चे मेडिकल भाषा में अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर (ADHD) से ग्रसित है। हाल में कराये गये एक सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले है।

सद्भावना मार्च

पिछले दिनों फैज़ाबाद में साम्प्रदायिक तत्वों ने दुर्गापूजा के अवसर पर शहर के चौक क्षेत्र में और जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में उपद्रव मचाया और आगजनी की और बहुत से घरों और दुकानों को जला डाला जिससे भारी आर्थिक क्षति हुई। इन घटनाओं से शहर की गंगा-जमुनी संस्कृति को भी गंभीर क्षति पहुँची
शहर में इस प्रकार की साम्प्रदायिक गतिविधियों के विरुद्ध और सद्भावना के पक्ष में भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा), भारतीय नौजवान सभा और अन्य सांस्कृतिक संस्थाओं ने 18 नवम्बर, दिन रविवार को दिन के दो बजे से गुलाबबाड़ी से गाँधी  पार्क तक सद्भावना मार्च निकालने का निर्णय लिया है। यह मार्च चौक होते हुए गाँधी  पार्क पहुंच कर समाप्त होगा।
इस शांति मार्च में मुख्य रूप से प्रो. रूपरेखा वर्मा (सांझी दुनिया), भारतीय जननाट्य संघ के महासचिव राकेश, आत्मजीत सिंह एवं दीपक कबीर (कलम नाट्य संघ), वीरेन्द्र यादव (प्रगतिशील लेखक संघ), वंदना मिश्र (पी.यू.सी.एल.), रमेश दीक्षितयुगल किशोर (इप्टा), अनिल कुमार सिंह एवं विशाल श्रीवास्तव (जनवादी लेखक संघ), आफ़ाक (अवध पीपुल्स फोरम), शाह आलम (अयोध्या फिल्म सोसायटी), मो. तुफैल एवं युगल किशोर शरण शास्त्री (अयोध्या की आवाज़), आर. डी. आनन्द एवं रवि चतुर्वेदी (बीमा कर्मचारी संघ), नितिन मिश्रा (मूवमेन्ट फॉर राइट्स) अन्य साथियों के साथ उपस्थित रहेंगे।
फैज़ाबाद की सांस्कृतिक संस्थाओं, बुद्धिजीवियों, लेखकों, संस्कृतिकर्मियों एवं प्रबुद्ध नागरिकों से अपील है कि वे अधिक से अधिक संख्या में इस मार्च में भाग लेकर साम्प्रदायिकता के प्रति अपना विरोध दर्ज करें और सद्भावना मार्च को सफल बनायें

रविवार, 11 नवंबर 2012

अंतर्दृष्टि आलोकित करने का पर्व "दीपावली"

व्यक्तित्व विकार बनाता है समाज को अंधकारमयः मनदर्शन शोध आत्मप्रकाशित मन ही सुन्दर मन है। दीपावली का पर्व अपने मन का आत्मनिरीक्षण करके अपने व्यक्तित्व विकारों व मानसिक विकृतियों को सक्रिय रूप से पहचानने के उद्देश्य से पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यह पर्व अपने मन में मौजूद मानसिक व व्यक्तित्व विकारों को सक्रिय रूप से पहचानने का पर्व है, जिससे कि हमारा स्वस्थ्य व सुन्दर मानसिक पुनर्निमाण हो सके और आज विश्व-व्यापी महामारी का रूप ले रही मानसिक विकृतियों के फलस्वरूप अराजकता, हिंसा, आत्महत्या, अनैतिकता, संवेदनहीनता एवं आपराधिक प्रवित्तियों से कुरूप हो चुके तथा मानसिक बीमारियों से पीड़ित विश्व समाज स्वस्थ व खूबसूरत बन सके।

क्या है फ़ैज़ाबाद की गुलाबबाड़ी?

मोहब्बत की निशानी ताजमहल के बारे में कौन नहीं जानता, प्रेम का प्रतीक ताजमहल अपनी खूबसूरती के लिए देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मशहूर है। लेकिन आज यहाँ हम आपको ताजमहल के बारे में नहीं बल्कि फैजाबाद के नवाबों के शासन काल में निर्मित इमारतों में कुछ अलग सी दिखने वाली इमारत (जो कि अवध के तीसरे नबाब शुजाउद्दौला का मकबरा गुलाबबाड़ी के नाम से मशहूर है) के बारे में बताने जा रहे हैं

शनिवार, 10 नवंबर 2012

जान पर खेल कर पेट पालता बचपन

धार्मिक नगरी अयोध्या में हर रोज़ हज़ारो लोग दर्शन और पूजन कर पुण्य कमाने आते हैं। पावन सलिला सरयू में डुबकियां लगाकर अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते हैं। और अपने आप को पवित्र करते हैं। लेकिन इसी अयोध्या के सरयू तट के किनारे समाज का एक स्याह पहलू भी नज़र आता है। जहां दर्जनों मासूम बच्चे पेट की आग बुझाने के लिए अपने बचपन की ख्वाहिशों का गला घोट कर दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद में लगे रहते हैं।

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

समझ–समझ कर भी न समझे

आजकल कुछ माहौल ऐसा गरमाया हुआ है कि, चाहे पान मसाला सूखे मुँह में झोंकने वाले हों या चरमराती बेंच पर बैठ कर सपरेटे दूध की बासी चाय की चुस्की लेने वाले लोग, सब के सब शहरों में हुए आगजनी व दंगों की बातें किस्सा-ए-तोता-मैना की तरह सुन-सुना रहे हैं। इसके अलावा दूसरी कोई बात ही नहीं। कोई किसी संप्रदाय विशेष को दोष दे रहा है तो कोई प्रशासन को ही दुशासन बता कर नाकारा साबित करने के लिए दलीलों पर दलीलें पेश करने के चक्कर में अपने को ज़्यादा क़ाबिल समझाने की कोशिश कर रहा है।

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

अंतर्निहित व्यक्तित्व-विकार व मनोरोग बनाता है समाज को नशाखोर

‘अंतर्राष्ट्रीय मादक द्रव्य व्यसन व अवैध तस्करी रोधी दिवस’ (26 जून) : मनदर्शन रिपोर्ट ‘व्यक्तित्व-विकार व मनोरोग’ रहित मन ही ‘नशा-रहित मन’ है। ‘अंतर्राष्ट्रीय मादक द्रव्य व्यसन व अवैध तस्करी रोधी दिवस’ (26 जून) हमें अपने मन का आत्मनिरीक्षण करके अपने व्यक्तित्व विकारों व मानसिक विकृतियो को सक्रिय रूप से पहचानने के उद्देश्य से पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यह दिन हमें अपने मन में मौजूद मानसिक व व्यक्तित्व-विकारों को सक्रिय रूप से पहचानने का समय है, जिससे की हमारा स्वस्थ व सुन्दर मानसिक पुनर्निर्माण हो सके जिससे की आज विश्व-व्यापी महामारी का रूप ले रहे नशे की लत के फलस्वरूप अराजकता, हिंसा, आत्महत्या, अनैतिकता, संवेदनहीनता एवं आपराधिक प्रवित्तियों से कुरूप हो चुका तथा मानसिक बीमारियों से पीड़ित विश्व समाज स्वस्थ व खूबसूरत बन सके।

सोमवार, 5 नवंबर 2012

सैंडी का क़हर

परमात्मा बहुत दयालु है। उसे हम चाहे जिस नाम से याद करें। प्रत्येक पवित्र धर्म-ग्रंथों में भी यही कहा गया है। कहा ही नहीं गया है बल्कि उस पर पूरे ईमान के साथ अमल करने के लिए बताया भी गया है। इसीलिए विभिन्न अवतारों और पैगंबरों ने इसे ही मूलमंत्र मान कर अपने-अपने मजहबपरस्तों या धर्मावलंबियों को अमल में लाने का उपदेश दिया है। इसमें किसी की दो राय नहीं हो सकती है। कि इंसान की किसी भूल के लिए उसे ही दोषी मान कर सज़ा दी जाए। हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों में साफ-साफ लिखा गया है। कि भगवान शंकर ने असुर कहे जाने वाले लोगों को अधिक से अधिक उनके मनचाहे वरदान दिये थे।

रविवार, 4 नवंबर 2012

हमें निरक्षर साबित करते सांप्रदायिक झगड़े

मैंने BA किया है, मैंने MA किया है, मैं MBA कर रहा हूँ, मैं तो IAS की तैयारी कर रहा हूँ। ये सब लोग कहते तो जरूर हैं परन्तु इतना सब कुछ करने के बाद भी हम अनपढ़ ज़ाहिलों की तरह किसी भी छोटी सी बात पर एक दूसरे को मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं।
पता नहीं क्यों धर्म-जाति के नाम पर हमलोग आवेश में आकर लड़ाई-झगड़ा शुरू कर देते हैं जो की हमारे पढ़े-लिखे ज़ाहिल होने को दर्शाता है। आज भी हमारे यहाँ होने वाले सम्प्रदायिक झगड़े हमारी निरक्षरता को दर्शाते हैं और हमें किताबी ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं।
आखिर हम धर्म और आस्था के नाम पर कब तक लड़ते रहेगें मैं कहता हूँ कि धर्म और आस्था के नाम पर झगड़ा शुरू करने वाले निरक्षर हैं, परन्तु उसे आगे बढ़ाने वाले तो साक्षर हैं। परन्तु मेरे हिसाब से उनसे बड़ा निरक्षर कोई नहीं हैं जो ऐसे लड़ाई-झगड़ो को रोकने की बजाय आगे बढ़ाने का कार्य करते हैं।
अगर आगे भी इसी तरह हम सम्प्रदायिक झगड़ों को बढ़ावा देते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हम विश्व के मानचित्र पर पूर्णतः निरक्षर साबित होते नजर आयेगें।

आस्था या आतंक

एक तरफ हम कहते हैं कि हमें अपने हर आन्दोलन को गांधीगिरि से करना चाहिए। और कहीं-कहीं हम गांधीगीरी करते भी हैं, पर जहाँ कहीं आस्था से जुड़ी कोई बात होती है तो हम उत्तेजित क्यों हो जाते हैं? क्या हमारा धर्म, हमारी आस्था हमें इसकी इजाज़त देती है? शायद कभी नहीं, धर्म के नाम पर लोग क्यों उत्तेजित होकर उन्माद फ़ैलाने की कोशिश करते हैं वो चाहे जिस धर्म के हों। जिस ईश्वर, अल्लाह की आस्था में हम दिन-रात लगे रहते हैं उसी के नाम पर हम लड़ाई-झगड़ा करने पर उतारू हो जाते हैं, इन धार्मिक लड़ाइयों से हमें सिर्फ नुकसान होता है, फ़ायदा कभी नहीं होता, धर्म के नाम पर होने वाले दंगे सिर्फ वर्चस्व की लड़ाई होती है। उनका कोई सही निष्कर्ष कभी नहीं निकलता। आज हम धर्म को झगड़ों से दूर रखें तो हमारी धार्मिक आस्था को एक नया बल मिलेगा और हम अपने ईश्वर, अल्लाह के प्रति अधिक निष्ठावान होंगे। धर्म के नाम पर होने वाले लड़ाई-झगड़ों को हमें अपने दिल-दिमाग से बाहर निकाल फेंकना होगा तभी हमारा जीवन आस्था के प्रति भय मुक्त होगा।

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

अपनी साझी संस्कृति को बचाइये !

फैज़ाबाद में दुर्गापूजा के अन्तिम चरण में जिस प्रकार की शर्मसार करने वाली घटनाएं घटी हैं, वे निहायत ही गंभीर हैं। दो समुदाय आपस में टकराये, मारपीट की, और दुकाने जलायी गयी। जैसा कि अक्सर होता है इन घटनाओं के बाद लोग एक दूसरे पर आरोप लगाए और सारा माहौल तनावपूर्ण हो जायेगा। कुछ लोग इसमें साम्प्रदायिक हिसाब-किताब लगायेंगे और अपना उल्लू सीधा करेंगे। फिर राजनीतिक बगुले अपना कूटनीतिक ध्यान साधेंगे। लेकिन यह एक सच है कि फैज़ाबाद जैसे साम्प्रदायिक सौहार्द वाले शहर में ये घटनाएं बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं। हमारी धर्मसमभाव और धार्मिक सहिष्णुता की संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में इस प्रकार की घटनाएँ बेहद चिन्ता का विषय हैं।

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

साज़िशों के बीच धधकता शहर

25 अक्तूबर 2012, आज अल्सुबह बादल रोए और शाम को शहर रो रहा है, बहुत रो रहा है। गंगाजमुनी तहज़ीब तंग गली में फफ़क-फफ़क कर इस तरह रो रही है कि मैं भी अपने को रोक नहीं पा रहा हूँ। वह अपना रोना भूल कर मेरे आँसू अपने मुक़द्दस आँचल से पोंछते हुए जैसे कहती है कि जिसके घर शीशे के बने होते हैं वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं मारा करते हैं
अचानक उधर चौक से रिकाबगंज की तरफ जाती खासमखास सड़क चीख पड़ी तो मैं उधर भागता हूँ। वहाँ का सीन देख कर कलेजा मुँह को आ जाता है और दिल तार-तार हो जाता है। सजी-सँवरी और कुछ देर पहले तक शोख़ अदाओं से हरदिल अज़ीज़ दुकानें आग के शोलों से घिरी दिल दहलाने वाली चीख-पुकार कर रहीं हैं और कुछ निहाएत वहशी लोग कहकहे लगा कर शहर को नापाक करते दिखाई दे रहें है।

‘हमारा फैज़ाबाद’ के माथे पर एक और बदनुमा दाग

कल यानि 24 अक्टूबर 2012 के दिन विजयदशमी का जुलूस अपने पूरे शबाब पर था। शाम हो चुकी थी मैं भी जुलूस के गाज़े-बाज़े को सुन-सुन कर ऊब चुका था। आखिर में मैं भी घर के लिए निकला रोड पर जुलूस की भीड़-भाड़ के कारण मैं बाइक से सीधे रास्ते से घर नहीं आ सकता था। तभी मेरे एक मुस्लिम मित्र ने मुझे सलाह दी कि आप गली से चले जाएँ, सिर्फ सलाह ही नहीं दी बकायदा साथ लेकर छोड़ा भी। मैं जैसे ही घर पहुँचा तभी मुझे मोबाइल पर सूचना मिली कि चंद खुराफ़ातियों ने चौक-रिकाबगंज रोड पर बलबा कर दिया है और तोड़-फोड़ करने लगे हैं साथ ही कुछ ग़रीब मुस्लिमों की दुकानों को आग लगा दी हैं। मुझे बाद में पता चला कि उस क्षेत्र में लाइट भी गुल हो गयी थी। पूरे रोड पर जबर्दस्त जाम लग चुका था। बलबाइयों ने उस क्षेत्र को चारों ओर से घेर लिया था।

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

मनदर्शन-मिशन ने उजागर किया मानवीय-संबंधो को तार-तार कर देने वाले मनोरोग : पैरानोइया

मनदर्शन-मिशन ने उजागर किया मानवीय-संबधो को तार-तार कर देने वाले मनोरोग का ! मानवीय-संबंधो को तार-तार कर देने वाला मनोरोग : ‘पैरानोइया’ आप आए दिन ऐसी खबरों से अवश्य रूबरू होते होंगे जो कि मानवीय संबंधो को तार-तार कर देती है, जैसे की पति या पत्नी द्वारा एक दुसरे पर घोर अत्याचार व हिंसा, भाई द्वारा भाई की हत्या, माँ द्वारा बेटे-बेटी के प्रति या बच्चो द्वारा माँ-बाप के प्रति जानलेवा हमला, सास व बहु के बीच हिंसक वारदातें या अन्य पारिवारिक जघन्य हिंसक घटनाए | ऐसी घटनाएँ तो खबर का अहम् हिस्सा बनती है लेकिन इन घटनाओं के मुख्य कारक पहलू आम जनता के समक्ष उजागर नहीं हो पाते है |

यह ‘Rice Puller' आखिर है क्या?

हमारे शहर फैज़ाबाद में विगत 21/22 सितम्बर की रात में चोरी हो गयी प्रसिद्ध बड़ी देवकाली मंदिर की मूर्ति 22 सितम्बर को कानपुर से बरामद की गयी। इस मंदिर की मूर्ति 40 लाख में बिकने वाली थी। इस बरामदगी के बीच एक दिलचस्प बात जो पता चली वो मेरे और शायद आपके लिए भी गौर फरमाने वाली है। इसके लिए हज़ारों संदिग्ध मोबाइल नम्बर के मैसेज एस॰एस॰पी- रमित शर्मा सेंसर कराते रहे। इसी में एक मैसेज वह भी था जिसमें ‘RP Done’ का उल्लेख था। RP यानि ‘Rice Puller’
‘RP’ आपके लिए तो नया नाम है, पर मूर्ति तस्करों के लिए नया नहीं है। RP यानि राइस-पुलर उसे कहते हैं जो मूर्ति चावल को अपनी तरफ खींच लेती है। है न दिलचस्प? अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में इसकी कीमत 70 हज़ार रुपये प्रति किलोग्राम से लेकर 3 लाख रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है। यही वज़ह है कि मंदिरों से पुरानी मूर्तियों को चुराए जाने का सिलसिला तेज़ हो गया है।
चर्चा यह भी है कि जो मूर्ति ज्यादा पूजित होती है वह ज्यादा चावल खींचती है। इसलिए महत्वपूर्ण मंदिरों की प्राचीन RP मूर्तियां, मूर्ति चोरों के निशाने पर हैं। क्योंकि इसमें मोटा मुनाफा जो ठहरा। अब इस विडियो को देखकर 'राइस पुलर' मूर्ति को समझा जा सकता है।



सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

उपभोक्ता रोता है, बिजली हँसती है

यही हाल तो है अपने खुशनुमा शहर का कि उपभोक्ता बेचारे रोते हैं और कमबख्त बिजली हँसती रहती है। हँसते हैं बिजली के हर ठुमके पर उसके साज़िंदे जो फेसू के खंडरहरनुमा हाल मे बैठ कर बे-वक़्त की शहनाई बजाने और मुफ्त चाय की चुस्की लेने में मस्त रहते हैं। एक दिन फेसू के अँगने मे लगे विशाल पीपल के पेड़ के नीचे बने टुटहे चबूतरे पर शाम के झुरमुटे में बनी-ठनी बिजली से मुलाक़ात हो गई। थोड़ा सन्नाटा था थोड़ी चहल-पहल। मौका-महल देख कर पूछ लिया कभी तुम्हें अपने रोते बिलखते उपभोक्ताओं पर तरस नहीं आता जो दिन भर यहाँ बिलों की मरम्मत कराने में तुम्हारी कमाई खाने वालों के तलुए सहलाने मे लगे रहते हैं? तरस भी आता है और रहम भी, पर क्या करें? फेसू के फ़साने में जो फँसी तो फँसती चली गई

जानिए “खूबसूरत-मन” क्या है? - मनदर्शन-रिपोर्ट

क्या आप जानते हैं? कि नाम मात्र लोग ही है खूबसूरत-मन के मालिक हैं!
मनदर्शन-रिपोर्ट:विश्व की प्रथम "खूबसूरत -मन" प्रतियोगिता में शामिल हुए 25 हजार प्रतिभागियों में से केवल 21 विजेताओं के चुने जाने के बाद प्रतियोगिता के जनक 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' ने बताया कि न चुने गये प्रतियोगियों में कुछ न कुछ व्यक्तित्व विकार मौजूद रहे हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या (60 प्रतिशत) उन लोगों की थी, जो- बनावटी व्यक्तित्व विकार (Histrionic Personality Disorder) से ग्रसित थे। दूसरा प्रमुख व्यक्तित्व विकार (30 प्रतिशत) स्वार्थी व्यक्तित्व विकार (Narcissistic Personality Disorder) रही। तीसरे नम्बर पर (8 प्रतिशत) ईर्ष्यालु व शंकालु व्यक्तित्व विकार (Nihilistic Personality Disorder) तथा चौथे नम्बर पर (2 प्रतिशत) नकारात्मक व्यक्तित्व विकार (Paranoid Personality Disorder) पाया गया। 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' ने इन चार व्यक्तित्व विकारों को अति गम्भीर व नकारात्मक मानक मानते हुए ऐसे व्यतित्व विकार से ग्रसित लोगों को प्रथम चरण में ही प्रतियोगिता से बाहर कर दिया। तत्पश्चात शेष बचे लोगों में खूबसूरत मन (मेन्टल ब्यूटी) के सकारात्मक पहलुओं

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

आखिर क्यों ?

मेरा ‘दायरा। मैं ‘दायरे’ में सिमट रहा हूँ या ‘दायरा’ मुझमें सिमट रहा हैकुछ कह नहीं सकता हूँ। बस इतना जानता हूँ कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। एक दूसरे के बगैर कोई एक पल नहीं जी सकता है। जैसे दो जिस्म एक ज़ान। मेरे ‘दायरे’ के भीतर हालिया अखबारों की कुछ कतरनें बिखरी पड़ीं हैं। बाहर खुली सड़क पर हवा में महँगाईभ्रष्टाचार और घोटालों के खिलाफ लोग गुम्में उछाल रहें हैं। लग रहा है कि सचमुच लोकतंत्र का मौसम अपने शबाब पर है। मौसम की फुहार है। सुहानी भी संभव है और जानलेवा भी। सुहाना मौसम उनके लिए जो अपने बरामदे मे बैठे-बैठे जाम लड़ाते हुए फुहार का मज़ा लेते हैं। जानलेवा रमफेरवा जैसे फ़टीचर लोगों के लिए जिनके मिट्टी के घरों में पानी समकते हुए ढहने का डर बना रहता है। मुझे भी रह-रह कर डर बना है कि कहीं इन फुहारों से मेरे ‘दायरे’ की दरो-दीवार न दरक जाए। इसमें कोई दर्शन नहींकोई फिलासफ़ी नहीं। एक हकीकत जिसे मैं अपने दायरे में बैठा झेल रहा हूँ।

सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

आस्था व अंधविश्वास के सूक्ष्म-भेद का राज़फाश

मनदर्शन-लीक्स मनदर्शन मिशन के मनोखोजी लेंस मनदर्शनलीक्सने आस्था व अंधविश्वास के सूक्ष्म-भेद का जनहित में खुलासा कर दिया है। आपके मन की आस्था आपके आध्यात्मिक व मानसिक संबल और शांति के लिए एक आवश्यक मानसिक भोजन है। आस्था एक तरह की मनोरक्षा-युक्ति है जो आपको तनाव, द्वन्द, व फ्रस्टेशन दूर करने में तो मदद करता ही है साथ ही आपके मन में खूबसूरती व मानसिक स्वास्थ्य का संचार करती है। मनदर्शन मनोविश्लेषकीय फाउन्डेशन द्वारा जारी आस्था के मनोजैविक पहलू का विश्लेषण करते हुए मनदर्शन अन्वेषक 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' बताते है कि आस्था वह मनोदशा है जिससे आपके मस्तिष्क में एंडोर्फिन व आक्सीटोसिन नामक रसायनों का स्त्राव बढ़ जाता है तथा तनाव बढ़ाने वाले रसायन कार्टिसोल काफी कम होने लगता है जिससे हमारे मन में स्फूर्ति, उमंग, उत्साह व आत्मविश्वास का संचार होता ही है, साथ ही सम्यक मनोअंतर्दृष्टि का भी विकास होता है। परन्तु अति पूजा-पाठ व धार्मिक अनुष्ठान में अतिलिप्तता एक तरह की मानसिक अस्वस्थता व मनोविकृति का लक्षण हो सकता है जिसका लगातार एक्स्पोसर अंतर्दृष्टि-शून्यता की तरफ ले जा सकता है जिससे आप अवसाद, उन्माद, ओसीडी व स्किजोफ्रिनिया जैसे मनोरोग से ग्रसित हो सकते है। वैज्ञानिक आध्यात्मिकता का हवाला देते हुए मन-गुरु ने बताया कि अध्यात्म व आस्था का मूल उद्देश्य आपको अपने मन की गहराइयों में ले जाना है जिससे कि आपकी मनोअंतर्दृष्टि का विकास इस प्रकार हो सके कि आप अपने मन के स्वामी बन सके तथा आपका मन दैवीय-प्रदर्शन करने वाले व खुद को ईश्वरीय शक्तिधारी बताने वाले तत्वों के चंगुल में न फंस सके। समाज में ऐसे तत्व भोले-भाले आम इन्सान के मन से इस प्रकार खेलते है कि तमाम अवसाद, हिस्टीरिया, ओसीडी, उन्माद व स्किजोफ्रिनिया से ग्रसित लोग इनके द्वारा झाड़-फूक के नाम पर तमाम शारीरिक यातनाये झेलते है तथा उनके परिवारीजन भी अज्ञानता वश इनसे प्रभावित होकर मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को इनके हवाले कर देते है। जबकि सच्चाई यह है कि ऐसे तत्व या तो शातिर दिमाग ठग होते है या वे खुद मानसिक रूप से बीमार होते है।
सूक्ष्म मनोगतिकीय विभेद: स्वस्थ व परिपक्व मनोरक्षा-युक्ति आपको सम्यक आस्था व आध्यात्मिकता की तरफ ले जाता है जिससे मनोअंतर्दृष्टि का विकास होता है और मानसिक शांति व स्वास्थ्य में अभिवृद्धि होती है। जबकि दूसरी तरफ, अपरिपक्व, न्यूरोटिक, साईकोटिक मनोरक्षा-युक्तिया जो कि विकृत व रुग्ण होती हैमनोअंतर्दृष्टि को क्षीण करते हुए अवसाद, ओ.सी.डी., उन्माद व स्किजोफ्रिनिया जैसी गंभीर मनोरोग का कारण बन सकती है।


रविवार, 14 अक्तूबर 2012

गुलाबबाड़ी - हमारा फैज़ाबाद

फैज़ाबाद - सन् 1880 में ली गयी गुलाबबाड़ी के सामने वाले दर की एक दुर्लभ तस्वीर।
यह फोटो है गुलाबबाड़ी दर (Gate), फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत की, जो मुगलकालीन सत्र 1880 में ली गयी थी। ये दर (Gate) गुलाबबाड़ी से चौक की तरफ जाने पर मिलता है। इसमें दोनों किनारे वाले रास्ते अब बंद हो चुके हैं। सिर्फ बीच वाला रास्ता ही अब खुला है। इसी तरह से हमारी धरोहर धीरे-धीरे ख़त्म होती जा रही है। जिसे बचाने के लिए हमलोग कुछ नहीं कर पा रहे हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें की ऐसे ही दर (Gate) चौक के चारों ओर आज भी बने हुए देखें जा सकते हैं। जो आज जर्जर हालत में पहुँच चुके हैं। कभी इनके इर्द-गिर्द लंबी चार दीवारी हुआ करती थी जिसके आज सिर्फ अवशेष ही बचे हैं। लगता हैं कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को धरोहर के नाम पर कुछ भी नहीं दें पाएंगे।

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

स्किज़ोफ्रिनिया : कल्पनालोक में जीने का मनोरोग।

विलक्षण प्रतिभा भी हो सकती है स्किज़ोफ्रिनिया का शिकार 'विश्व स्किज़ोफ्रिनिया दिवस'- 24 मई, पूरी दुनिया में इस गंभीर मनोरोग के प्रति जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से मनाया जाने लगा है
      सिनेमा में रूचि रखने वाले लोगो को सन 2001 में बनी हालीवुड की फिल्म "ए ब्यूटीफुल माइंड" याद होगी ऑस्कर अवार्ड जीतने वाली यह फिल्म नोबल पुरस्कार विजेता 'जान नैश' नामक अर्थशास्त्री के जीवन पर आधारित है, जो स्किज़ोफ्रिनिया नामक मानसिक रोग के शिकार हो चुके है भारत की पहली टेलीफोनिक साइकोथिरेपी सेवा मनदर्शन हेल्पलाइन 09453152200 से एकत्र डाटाबे के आधार पर विलक्षण प्रतिभा और स्किज़ोफ्रिनिया में सह-सम्बन्ध जानने के लिए स्किज़ोफ्रिनिया से ग्रसित उन लोगो पर पश्चगामी अध्ययन किया गया जो कभी आसाधारण प्रतिभा के धनी थे। इस अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला कि विलक्षण प्रतिभा के लोग भी आगे चलकर इस गंभीर मनोरोग का शिकार हो सकते है। इस अध्ययन के डाक्यूमेंट्री रिसर्च का हवाला देते हुए 'मनोशोधक डॉ. आलोक मनदर्शन' ने बताया कि अपने समय कि कुछ नामचीन हस्तिया जिन्होंने विज्ञान, कला, साहित्य आदि में अदभुत प्रतिभा का लोहा मनवाया, उन्हें भी आगे इसी बीमारी का शिकार होना पड़ा गुजरे वक़्त कि मशहूर अदाकारा 'परवीन बाबी' की मृत्यु भी इसी रोग से हुई है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हर एक असाधारण व्यक्ति स्किज़ोफ्रिनिया से ही ग्रसित हो, बल्कि यह मनोरोग किसी भी आम या ख़ास को हो सकता है
      केस-स्टडी, लक्षण : 'स्किज़ोफ्रिनिया' से ग्रसित व्यक्ति के मन में एक या अनेक झूठे विश्वास या भ्रान्ति इस गहरे तक बन जाती है कि अनेको सही तर्क दिए जाने पर भी वह अपने काल्पनिक विश्वासों को असत्य नहीं मानता है उदहारण के लिए स्किज़ोफ्रिनिया से ग्रसित कोई महिला चिथड़ो से बने बण्डल को अपना बच्चा समझ सकती है और किसी काल्पनिक व्यक्ति को उसका पिता। इसी तरह कोई रोगी हमेशा अपनी मुट्ठियों को इस भ्रान्ति से बांधे रह सकता है कि मुट्ठी खोलते ही कुछ अनर्थ हो सकता है ऐसे रोगी अपने दंपत्ति या प्रेमी की निष्ठां के प्रति भी शक या वहम बना सकता है। जिससे उसका दांपत्य या प्रेम जीवन छिन्न-भिन्न तो होता ही है, साथ ही इसकी परिणति हिंसक घटना के रूप में भी हो सकती है। ऐसे रोगी यह भी काल्पनिक विश्वास कर सकते है कि उनमे अलौकिक शक्ति आ गई है जिसे दूसरे लोग नहीं जानते
      मनोगतिकीय कारक: 'स्किज़ोफ्रिनिया' से ग्रसित रोगी अपने कल्पना लोक से इतना आत्मसात होने लगता है कि वह खुद से बाते करना, हँसना, क्रोधित होना, अजीबो-गरीब मुद्रा बनाना जैसी असामान्य हरकते करने लगता है उसके मन में तमाम प्रकार के शक व् वहम इस प्रकार घर कर लेते है कि वह अपने करीबियों व् परिजनों से भी खतरा महसूस करने लगता है तथा उसे यह भी महसूस हो सकता है कि उसके दिमाग को लोग पढ़ ले रहे है और विभिन्न शक्तियों के माध्यम से उसके दिमाग को नष्ट करने की साजिश हो रही है। फिर वह अपने बचाव हेतु कर्मकाण्ड, तंत्र-मंत्र आदि शुरू कर सकता है तथा जहर दे कर मार दिए जाने के शक में खाना पीना तक छोड़ सकता है एवं असुरक्षा की भावना और बढ़ने पर वह घर छोड़ कर भाग सकता है या खुद को कमरे में कैद कर सकता है
      मनोविश्लेषण: मनदर्शन डाटाबे से एकत्र स्किज़ोफ्रिनिया के विभिन्न लक्षणों को सारांश रूप में 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' ने शक्की व झक्की के रूप में परिभाषित किया है डॉ. मनदर्शन ने यह भी बताया कि ऐसे मरीजो की अपनी मनोरुग्णता के प्रति अंतर्दृष्टि लगभग शून्य होती है जिससे की वे खुद को मनोरोगी मानने को तैयार नहीं होते है तथा वास्तविक दुनिया से अलग थलग अपने झूठे विश्वास या भ्रान्ति की दुनिया को ही सही मानते है स्किज़ोफ्रिनिया रोगी को अजीबो-गरीबो आवाजे सुनाई पड़ती है और असामान्य दृष्य भी दिखाई पड़ सकते है जिन्हें वह वास्तविक समझता है जबकि सच्चाई यह होती है कि मरीज का बीमार मन ही ऐसी आवाजे व दृष्य पैदा करता है यही कारण है कि स्किज़ोफ्रिनिक मरीज आसानी से जादू-टोना, तंत्र-मन्त्र आदि के अन्धविश्वास में भी फंस जाते है और उनके परिजन भी जागरूकता की कमी के कारण इसे मनोरोग के रूप में नहीं समझ पाते
      उपचार व पुनर्वास : मरीज के शुरूआती लक्षणों को पहचान कर उसका समुचित मनोउपचार करना चाहिए तथा उनमे आत्मविश्वास व दूसरो पर विश्वास करने को प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे की उसमे स्वस्थ अंतर्दृष्टि एवं कल्पनालोक से इतर व्यावहारिक जीवन जीने की जिवेष्णा का विकास हो सके। मरीज से उनके असामान्य व्यवहार की प्रतिक्रिया सकारात्मक ढंग से करना चाहिए न की हिंसक या मार-पीट के द्वारामरीज के सामाजिक व्यवहार व मनोरंजक क्रियाकलापों का बढ़ावा देना चाहिए
मनो-अद्ध्यात्म्विद: डॉ. आलोक मनदर्शन'
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