परमात्मा बहुत दयालु है। उसे हम चाहे जिस नाम से याद करें। प्रत्येक
पवित्र धर्म-ग्रंथों में भी यही कहा गया है। कहा ही नहीं गया है बल्कि उस पर पूरे
ईमान के साथ अमल करने के लिए बताया भी गया है। इसीलिए विभिन्न अवतारों और पैगंबरों
ने इसे ही मूलमंत्र मान कर अपने-अपने मजहबपरस्तों या धर्मावलंबियों को अमल में
लाने का उपदेश दिया है। इसमें किसी की दो राय नहीं हो सकती है। कि इंसान की किसी
भूल के लिए उसे ही दोषी मान कर सज़ा दी जाए। हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों में साफ-साफ
लिखा गया है। कि भगवान शंकर ने असुर कहे जाने वाले लोगों को अधिक से अधिक उनके
मनचाहे वरदान दिये थे।
इन सब बातों का ज़िक्र मैं यहाँ
इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मैंने इधर समाचार-पत्रों में पढ़ा कि इजिप्ट (मिस्र) देश
के किसी काबिल मौलाना ने अमेरिका में आए भारी तूफान से हुई बेशुमार तबाही के प्रति
हमदर्दी जताने के बजाय उसे अल्लाह का कहर बताया। ये क़ाबिल मौलाना को यह नहीं मालूम
कि इस तरह की प्राकृतिक आपदाएँ किसी वर्ग विशेष को नुकसान नहीं पहुंचाती बल्कि उसकी
जद में जो भी आता है वो उसे नष्ट कर डालती हैं।
इन क़ाबिल मौलाना को ये नहीं
मालूम की रसूल ने ख़ुद कहा था कि किसी पर आई मुसीबत पर कभी हंसना मत। जहाँ तक हो
सके उसकी मदद ही करना। यही सच्ची इबादत होगी। ज़नाब मौलाना शायद उस पाकपरवरदीगार पर
तोहमत मढ़ते वक्त भूल गए थे कि हज़रत मोहम्मद सल्लाहे अलये वसल्लम जब प्रतिदिन नमाज़
के लिए निकलते थे तो एक बुढ़िया अपनी छत पर से उन पर कूड़ा फेंक दिया करती थी। लेकिन
मोहम्मद साहब मुस्कराते हुए इबादत के लिए चले जाते थे। एक दिन जब उन पर कूड़ा नहीं
पड़ा तो लोगों से उन्होने पूछा? तब वहाँ आस-पास के बाशिंदों ने बताया कि बुढ़िया
बहुत बीमार है। यह सुनकर हज़रत मोहम्मद सल्लाहे अलये वसल्लम को बहुत दुख हुआ। उन्होने
तो यह ख्वाब में भी नहीं सोचा कि उस बुढ़िया को अल्लाह ने मुझे नापाक करने की सज़ा
दी है।
इसी तरह प्रभु ईशु को जब
सूली पर चढ़ाया गया तो उन्होने परमेश्वर से उन्हें सूली पर चढ़ाने वालों को माफ करने
के लिए प्रार्थना की थी। इसी तरह के उदाहरण अन्य धर्मों में भी मिलते हैं।
हालांकि दुनिया के समझदार
मुसलमानों नें उस मौलाना के कथन की पूरी तरह से मज़म्मत की है। इंसानियत का तक़ाज़ा है
कि इस तरह की आपदा अमेरिका ही नहीं बल्कि किसी मुल्क पर आए तो हमारे दोनों हाथ
इमदाद के लिए खुले होने चाहिए। यह वक्त मदद का है, न कि अपनी दुश्मनी का बदला
लेने का।
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