हज़रत मोहम्मद सललाहे-अल्ले-वसल्लम
के नवासे जनाब हसन और हुसैन की शहादत वाकई में क़ाबिले अक़ीदत है। हर साल जब मुहर्रम
का गमज़दा महीना आता है तो तवारीख के गमज़दा पन्नों की भी आँखें छलक पड़ती हैं। ज़ुलमियों
ने न सिर्फ हसन और हुसैन को बल्कि उनके पूरे खानदान के अनबोलते बच्चों तक को प्यासा
रखते हुए मौत के घाट उतारा। ‘हमारा फैज़ाबाद’ में पूरे मोहर्रम माह मे राठहवेली
के जवाहरअली के इमामबाड़े, नवाब शुजाऊदौला की मनपसन्द गुलाबबाड़ी और बहू बेगम साहिबा के मक़बरे के साथ
जगहों-जगहों पर लोग मजलिसों मे हिस्सा लेकर अपनी अक़ीदत पेश करते हैं क्योकि सच्चाई
के लिए उन्होने कुर्बानी दी थी जो एक नायाब मिसाल है। इस मौके पर ‘हमारे फैज़ाबाद’ के, और बाहर के
गैर-मुस्लिम भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते देखे जाते हैं।
यह ब्लॉग 'फैज़ाबाद’ के उन जनमानस को ध्यान में रखकर शुरू किया गया एक प्रयास है जो लिखना तो बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन उनके पास इस माध्यम का पर्याप्त ज्ञान नहीं है। अंतरजाल पर इस शहर के बिखरे हुये कई सारे लोगों को एक सूत्र में पिरोकर अपनी बात को एक मंच देने के लिए, जिसके माध्यम से कई सारे लोगों की रचनाओं को एक ही जगह दिखाया जाएगा। आपके अपने नाम से। अगर हमारी यह कोशिश आपको पसंद आए, तो इस ब्लॉग में ज़रूर शामिल हों। आप अपनी रचनाओं को इस मेल पते पर भेज सकते हैं:-hamarafaizabad@gmail.com
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