रविवार, 4 नवंबर 2012

आस्था या आतंक

एक तरफ हम कहते हैं कि हमें अपने हर आन्दोलन को गांधीगिरि से करना चाहिए। और कहीं-कहीं हम गांधीगीरी करते भी हैं, पर जहाँ कहीं आस्था से जुड़ी कोई बात होती है तो हम उत्तेजित क्यों हो जाते हैं? क्या हमारा धर्म, हमारी आस्था हमें इसकी इजाज़त देती है? शायद कभी नहीं, धर्म के नाम पर लोग क्यों उत्तेजित होकर उन्माद फ़ैलाने की कोशिश करते हैं वो चाहे जिस धर्म के हों। जिस ईश्वर, अल्लाह की आस्था में हम दिन-रात लगे रहते हैं उसी के नाम पर हम लड़ाई-झगड़ा करने पर उतारू हो जाते हैं, इन धार्मिक लड़ाइयों से हमें सिर्फ नुकसान होता है, फ़ायदा कभी नहीं होता, धर्म के नाम पर होने वाले दंगे सिर्फ वर्चस्व की लड़ाई होती है। उनका कोई सही निष्कर्ष कभी नहीं निकलता। आज हम धर्म को झगड़ों से दूर रखें तो हमारी धार्मिक आस्था को एक नया बल मिलेगा और हम अपने ईश्वर, अल्लाह के प्रति अधिक निष्ठावान होंगे। धर्म के नाम पर होने वाले लड़ाई-झगड़ों को हमें अपने दिल-दिमाग से बाहर निकाल फेंकना होगा तभी हमारा जीवन आस्था के प्रति भय मुक्त होगा।

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