एक तरफ हम
कहते हैं कि हमें अपने हर आन्दोलन को गांधीगिरि से करना चाहिए। और कहीं-कहीं हम
गांधीगीरी करते भी हैं, पर जहाँ कहीं आस्था से जुड़ी कोई बात होती है तो हम उत्तेजित
क्यों हो जाते हैं? क्या हमारा धर्म, हमारी आस्था
हमें इसकी इजाज़त देती है? शायद कभी नहीं, धर्म के नाम पर लोग क्यों उत्तेजित
होकर उन्माद फ़ैलाने की कोशिश करते हैं वो चाहे जिस धर्म के हों। जिस ईश्वर, अल्लाह की आस्था में
हम दिन-रात लगे रहते हैं उसी के नाम पर हम लड़ाई-झगड़ा
करने पर उतारू हो जाते हैं, इन
धार्मिक लड़ाइयों से हमें सिर्फ नुकसान होता है, फ़ायदा कभी नहीं
होता, धर्म के नाम पर होने वाले दंगे सिर्फ
वर्चस्व की लड़ाई होती है। उनका कोई सही निष्कर्ष कभी नहीं निकलता। आज हम
धर्म को झगड़ों से दूर रखें तो हमारी धार्मिक आस्था
को एक नया बल मिलेगा और हम अपने ईश्वर, अल्लाह के प्रति अधिक निष्ठावान
होंगे। धर्म
के नाम पर होने वाले लड़ाई-झगड़ों को हमें अपने दिल-दिमाग से बाहर निकाल फेंकना
होगा तभी हमारा जीवन आस्था के प्रति भय मुक्त होगा।
यह ब्लॉग 'फैज़ाबाद’ के उन जनमानस को ध्यान में रखकर शुरू किया गया एक प्रयास है जो लिखना तो बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन उनके पास इस माध्यम का पर्याप्त ज्ञान नहीं है। अंतरजाल पर इस शहर के बिखरे हुये कई सारे लोगों को एक सूत्र में पिरोकर अपनी बात को एक मंच देने के लिए, जिसके माध्यम से कई सारे लोगों की रचनाओं को एक ही जगह दिखाया जाएगा। आपके अपने नाम से। अगर हमारी यह कोशिश आपको पसंद आए, तो इस ब्लॉग में ज़रूर शामिल हों। आप अपनी रचनाओं को इस मेल पते पर भेज सकते हैं:-hamarafaizabad@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
इस लेख को पढ़ने के बाद आपके दिल-दिमाग में जो भी बातें आयीं उसे टिप्पणी के रूप में यहाँ जरूर बताएँ।