अंतर्निहित व्यक्तित्व-विकार व मनोरोग बनाता है समाज को नशाखोर : 'डॉ. आलोक मनदर्शन'
‘अंतर्राष्ट्रीय मादक द्रव्य व्यसन व अवैध तस्करी रोधी दिवस’ (26 जून) : मनदर्शन रिपोर्ट
‘व्यक्तित्व- विकार व मनोरोग’ रहित मन ही ‘नशा- रहित मन’ है | ‘अंतर्राष्ट्रीय मादक द्रव्य व्यसन व अवैध तस्करी रोधी दिवस’ (26 जून) हमें अपने मन का आत्मनिरीक्षण करके अपने व्यक्तित्व विकारों व मानसिक विकृतियो को सक्रिय रूप से पहचानने के उद्देश्य से पूरी दुनिया में मनाया जाता है |
यह दिन हमें अपने मन में मौजूद मानसिक व व्यक्तित्व-विकारों को सक्रिय रूप से पहचानने का समय है , जिससे की हमारा स्वस्थ व सुन्दर मानसिक पुनर्निर्माण हो सके जिससे की आज विश्व-व्यापी महामारी का रूप ले रहे नशे की लत के फलस्वरूप अराजकता ,हिंसा ,आत्महत्या , अनैतिकता , संवेदनहीनता एवं आपराधिक प्रवित्तियों से कुरूप हो चुका तथा मानसिक बीमारियों से पीड़ित विश्व समाज स्वस्थ व खूबसूरत बन सके | क्योंकि आज समूचे विश्व की दो-तिहाई आबादी किसी न किसी प्रकार के व्यक्तित्व-विकार व मानसिक-विकृति से ग्रसित हो चुकी है जिसकी परिणति अल्प, मध्यम व गंभीर नशाखोरी के रूप में हो रही है |
स्वस्थ व सुन्दर मन के वैश्विक मिशन के प्रति समर्पित ‘मनदर्शन-मिशन’ ने ‘अंतर्राष्ट्रीय नशारोधी दिवस’ की पूर्व संध्या पर जारी निदानात्मक-शोध (Prognostic-Research) रिपोर्ट में इस तथ्य को उजागर किया गया है कि ‘अंतर्निहित व्यक्तित्व-विकार व मनोरोग’ ही विश्व समाज को तेजी से ले जा रहा है‘नशाखोरी’ की तरफ |
डॉ. आलोक मनदर्शन' ने नशाखोरों की अपने व्यक्तित्व-विकारों व मनोरोगों के प्रति अनभिज्ञता को ‘अंतर्दृष्टि-शून्यता’ ( Insight-Blindnesss ) के रूप में परिभाषित किया है | जिसके कारण लोग अपने बनाये तर्कों के आधार पर अपने नशाखोरी की लत को सही ठहराने की कोशिस करते है | जबकि सच्चाई यह है कि ऐसे लोगों का ‘अंतर्निहित व्यक्तित्व-विकार व मनोरोग’ ही आगे बढ़ते-बढ़ते‘नशाखोरी’ का रूप ले लेता है |