शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

अपनी साझी संस्कृति को बचाइये !

फैज़ाबाद में दुर्गापूजा के अन्तिम चरण में जिस प्रकार की शर्मसार करने वाली घटनाएं घटी हैं, वे निहायत ही गंभीर हैं। दो समुदाय आपस में टकराये, मारपीट की, और दुकाने जलायी गयी। जैसा कि अक्सर होता है इन घटनाओं के बाद लोग एक दूसरे पर आरोप लगाए और सारा माहौल तनावपूर्ण हो जायेगा। कुछ लोग इसमें साम्प्रदायिक हिसाब-किताब लगायेंगे और अपना उल्लू सीधा करेंगे। फिर राजनीतिक बगुले अपना कूटनीतिक ध्यान साधेंगे। लेकिन यह एक सच है कि फैज़ाबाद जैसे साम्प्रदायिक सौहार्द वाले शहर में ये घटनाएं बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं। हमारी धर्मसमभाव और धार्मिक सहिष्णुता की संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में इस प्रकार की घटनाएँ बेहद चिन्ता का विषय हैं।

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

साज़िशों के बीच धधकता शहर

25 अक्तूबर 2012, आज अल्सुबह बादल रोए और शाम को शहर रो रहा है, बहुत रो रहा है। गंगाजमुनी तहज़ीब तंग गली में फफ़क-फफ़क कर इस तरह रो रही है कि मैं भी अपने को रोक नहीं पा रहा हूँ। वह अपना रोना भूल कर मेरे आँसू अपने मुक़द्दस आँचल से पोंछते हुए जैसे कहती है कि जिसके घर शीशे के बने होते हैं वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं मारा करते हैं
अचानक उधर चौक से रिकाबगंज की तरफ जाती खासमखास सड़क चीख पड़ी तो मैं उधर भागता हूँ। वहाँ का सीन देख कर कलेजा मुँह को आ जाता है और दिल तार-तार हो जाता है। सजी-सँवरी और कुछ देर पहले तक शोख़ अदाओं से हरदिल अज़ीज़ दुकानें आग के शोलों से घिरी दिल दहलाने वाली चीख-पुकार कर रहीं हैं और कुछ निहाएत वहशी लोग कहकहे लगा कर शहर को नापाक करते दिखाई दे रहें है।

‘हमारा फैज़ाबाद’ के माथे पर एक और बदनुमा दाग

कल यानि 24 अक्टूबर 2012 के दिन विजयदशमी का जुलूस अपने पूरे शबाब पर था। शाम हो चुकी थी मैं भी जुलूस के गाज़े-बाज़े को सुन-सुन कर ऊब चुका था। आखिर में मैं भी घर के लिए निकला रोड पर जुलूस की भीड़-भाड़ के कारण मैं बाइक से सीधे रास्ते से घर नहीं आ सकता था। तभी मेरे एक मुस्लिम मित्र ने मुझे सलाह दी कि आप गली से चले जाएँ, सिर्फ सलाह ही नहीं दी बकायदा साथ लेकर छोड़ा भी। मैं जैसे ही घर पहुँचा तभी मुझे मोबाइल पर सूचना मिली कि चंद खुराफ़ातियों ने चौक-रिकाबगंज रोड पर बलबा कर दिया है और तोड़-फोड़ करने लगे हैं साथ ही कुछ ग़रीब मुस्लिमों की दुकानों को आग लगा दी हैं। मुझे बाद में पता चला कि उस क्षेत्र में लाइट भी गुल हो गयी थी। पूरे रोड पर जबर्दस्त जाम लग चुका था। बलबाइयों ने उस क्षेत्र को चारों ओर से घेर लिया था।

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

मनदर्शन-मिशन ने उजागर किया मानवीय-संबंधो को तार-तार कर देने वाले मनोरोग : पैरानोइया

मनदर्शन-मिशन ने उजागर किया मानवीय-संबधो को तार-तार कर देने वाले मनोरोग का ! मानवीय-संबंधो को तार-तार कर देने वाला मनोरोग : ‘पैरानोइया’ आप आए दिन ऐसी खबरों से अवश्य रूबरू होते होंगे जो कि मानवीय संबंधो को तार-तार कर देती है, जैसे की पति या पत्नी द्वारा एक दुसरे पर घोर अत्याचार व हिंसा, भाई द्वारा भाई की हत्या, माँ द्वारा बेटे-बेटी के प्रति या बच्चो द्वारा माँ-बाप के प्रति जानलेवा हमला, सास व बहु के बीच हिंसक वारदातें या अन्य पारिवारिक जघन्य हिंसक घटनाए | ऐसी घटनाएँ तो खबर का अहम् हिस्सा बनती है लेकिन इन घटनाओं के मुख्य कारक पहलू आम जनता के समक्ष उजागर नहीं हो पाते है |

यह ‘Rice Puller' आखिर है क्या?

हमारे शहर फैज़ाबाद में विगत 21/22 सितम्बर की रात में चोरी हो गयी प्रसिद्ध बड़ी देवकाली मंदिर की मूर्ति 22 सितम्बर को कानपुर से बरामद की गयी। इस मंदिर की मूर्ति 40 लाख में बिकने वाली थी। इस बरामदगी के बीच एक दिलचस्प बात जो पता चली वो मेरे और शायद आपके लिए भी गौर फरमाने वाली है। इसके लिए हज़ारों संदिग्ध मोबाइल नम्बर के मैसेज एस॰एस॰पी- रमित शर्मा सेंसर कराते रहे। इसी में एक मैसेज वह भी था जिसमें ‘RP Done’ का उल्लेख था। RP यानि ‘Rice Puller’
‘RP’ आपके लिए तो नया नाम है, पर मूर्ति तस्करों के लिए नया नहीं है। RP यानि राइस-पुलर उसे कहते हैं जो मूर्ति चावल को अपनी तरफ खींच लेती है। है न दिलचस्प? अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में इसकी कीमत 70 हज़ार रुपये प्रति किलोग्राम से लेकर 3 लाख रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है। यही वज़ह है कि मंदिरों से पुरानी मूर्तियों को चुराए जाने का सिलसिला तेज़ हो गया है।
चर्चा यह भी है कि जो मूर्ति ज्यादा पूजित होती है वह ज्यादा चावल खींचती है। इसलिए महत्वपूर्ण मंदिरों की प्राचीन RP मूर्तियां, मूर्ति चोरों के निशाने पर हैं। क्योंकि इसमें मोटा मुनाफा जो ठहरा। अब इस विडियो को देखकर 'राइस पुलर' मूर्ति को समझा जा सकता है।



सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

उपभोक्ता रोता है, बिजली हँसती है

यही हाल तो है अपने खुशनुमा शहर का कि उपभोक्ता बेचारे रोते हैं और कमबख्त बिजली हँसती रहती है। हँसते हैं बिजली के हर ठुमके पर उसके साज़िंदे जो फेसू के खंडरहरनुमा हाल मे बैठ कर बे-वक़्त की शहनाई बजाने और मुफ्त चाय की चुस्की लेने में मस्त रहते हैं। एक दिन फेसू के अँगने मे लगे विशाल पीपल के पेड़ के नीचे बने टुटहे चबूतरे पर शाम के झुरमुटे में बनी-ठनी बिजली से मुलाक़ात हो गई। थोड़ा सन्नाटा था थोड़ी चहल-पहल। मौका-महल देख कर पूछ लिया कभी तुम्हें अपने रोते बिलखते उपभोक्ताओं पर तरस नहीं आता जो दिन भर यहाँ बिलों की मरम्मत कराने में तुम्हारी कमाई खाने वालों के तलुए सहलाने मे लगे रहते हैं? तरस भी आता है और रहम भी, पर क्या करें? फेसू के फ़साने में जो फँसी तो फँसती चली गई

जानिए “खूबसूरत-मन” क्या है? - मनदर्शन-रिपोर्ट

क्या आप जानते हैं? कि नाम मात्र लोग ही है खूबसूरत-मन के मालिक हैं!
मनदर्शन-रिपोर्ट:विश्व की प्रथम "खूबसूरत -मन" प्रतियोगिता में शामिल हुए 25 हजार प्रतिभागियों में से केवल 21 विजेताओं के चुने जाने के बाद प्रतियोगिता के जनक 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' ने बताया कि न चुने गये प्रतियोगियों में कुछ न कुछ व्यक्तित्व विकार मौजूद रहे हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या (60 प्रतिशत) उन लोगों की थी, जो- बनावटी व्यक्तित्व विकार (Histrionic Personality Disorder) से ग्रसित थे। दूसरा प्रमुख व्यक्तित्व विकार (30 प्रतिशत) स्वार्थी व्यक्तित्व विकार (Narcissistic Personality Disorder) रही। तीसरे नम्बर पर (8 प्रतिशत) ईर्ष्यालु व शंकालु व्यक्तित्व विकार (Nihilistic Personality Disorder) तथा चौथे नम्बर पर (2 प्रतिशत) नकारात्मक व्यक्तित्व विकार (Paranoid Personality Disorder) पाया गया। 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' ने इन चार व्यक्तित्व विकारों को अति गम्भीर व नकारात्मक मानक मानते हुए ऐसे व्यतित्व विकार से ग्रसित लोगों को प्रथम चरण में ही प्रतियोगिता से बाहर कर दिया। तत्पश्चात शेष बचे लोगों में खूबसूरत मन (मेन्टल ब्यूटी) के सकारात्मक पहलुओं

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

आखिर क्यों ?

मेरा ‘दायरा। मैं ‘दायरे’ में सिमट रहा हूँ या ‘दायरा’ मुझमें सिमट रहा हैकुछ कह नहीं सकता हूँ। बस इतना जानता हूँ कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। एक दूसरे के बगैर कोई एक पल नहीं जी सकता है। जैसे दो जिस्म एक ज़ान। मेरे ‘दायरे’ के भीतर हालिया अखबारों की कुछ कतरनें बिखरी पड़ीं हैं। बाहर खुली सड़क पर हवा में महँगाईभ्रष्टाचार और घोटालों के खिलाफ लोग गुम्में उछाल रहें हैं। लग रहा है कि सचमुच लोकतंत्र का मौसम अपने शबाब पर है। मौसम की फुहार है। सुहानी भी संभव है और जानलेवा भी। सुहाना मौसम उनके लिए जो अपने बरामदे मे बैठे-बैठे जाम लड़ाते हुए फुहार का मज़ा लेते हैं। जानलेवा रमफेरवा जैसे फ़टीचर लोगों के लिए जिनके मिट्टी के घरों में पानी समकते हुए ढहने का डर बना रहता है। मुझे भी रह-रह कर डर बना है कि कहीं इन फुहारों से मेरे ‘दायरे’ की दरो-दीवार न दरक जाए। इसमें कोई दर्शन नहींकोई फिलासफ़ी नहीं। एक हकीकत जिसे मैं अपने दायरे में बैठा झेल रहा हूँ।

सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

आस्था व अंधविश्वास के सूक्ष्म-भेद का राज़फाश

मनदर्शन-लीक्स मनदर्शन मिशन के मनोखोजी लेंस मनदर्शनलीक्सने आस्था व अंधविश्वास के सूक्ष्म-भेद का जनहित में खुलासा कर दिया है। आपके मन की आस्था आपके आध्यात्मिक व मानसिक संबल और शांति के लिए एक आवश्यक मानसिक भोजन है। आस्था एक तरह की मनोरक्षा-युक्ति है जो आपको तनाव, द्वन्द, व फ्रस्टेशन दूर करने में तो मदद करता ही है साथ ही आपके मन में खूबसूरती व मानसिक स्वास्थ्य का संचार करती है। मनदर्शन मनोविश्लेषकीय फाउन्डेशन द्वारा जारी आस्था के मनोजैविक पहलू का विश्लेषण करते हुए मनदर्शन अन्वेषक 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' बताते है कि आस्था वह मनोदशा है जिससे आपके मस्तिष्क में एंडोर्फिन व आक्सीटोसिन नामक रसायनों का स्त्राव बढ़ जाता है तथा तनाव बढ़ाने वाले रसायन कार्टिसोल काफी कम होने लगता है जिससे हमारे मन में स्फूर्ति, उमंग, उत्साह व आत्मविश्वास का संचार होता ही है, साथ ही सम्यक मनोअंतर्दृष्टि का भी विकास होता है। परन्तु अति पूजा-पाठ व धार्मिक अनुष्ठान में अतिलिप्तता एक तरह की मानसिक अस्वस्थता व मनोविकृति का लक्षण हो सकता है जिसका लगातार एक्स्पोसर अंतर्दृष्टि-शून्यता की तरफ ले जा सकता है जिससे आप अवसाद, उन्माद, ओसीडी व स्किजोफ्रिनिया जैसे मनोरोग से ग्रसित हो सकते है। वैज्ञानिक आध्यात्मिकता का हवाला देते हुए मन-गुरु ने बताया कि अध्यात्म व आस्था का मूल उद्देश्य आपको अपने मन की गहराइयों में ले जाना है जिससे कि आपकी मनोअंतर्दृष्टि का विकास इस प्रकार हो सके कि आप अपने मन के स्वामी बन सके तथा आपका मन दैवीय-प्रदर्शन करने वाले व खुद को ईश्वरीय शक्तिधारी बताने वाले तत्वों के चंगुल में न फंस सके। समाज में ऐसे तत्व भोले-भाले आम इन्सान के मन से इस प्रकार खेलते है कि तमाम अवसाद, हिस्टीरिया, ओसीडी, उन्माद व स्किजोफ्रिनिया से ग्रसित लोग इनके द्वारा झाड़-फूक के नाम पर तमाम शारीरिक यातनाये झेलते है तथा उनके परिवारीजन भी अज्ञानता वश इनसे प्रभावित होकर मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को इनके हवाले कर देते है। जबकि सच्चाई यह है कि ऐसे तत्व या तो शातिर दिमाग ठग होते है या वे खुद मानसिक रूप से बीमार होते है।
सूक्ष्म मनोगतिकीय विभेद: स्वस्थ व परिपक्व मनोरक्षा-युक्ति आपको सम्यक आस्था व आध्यात्मिकता की तरफ ले जाता है जिससे मनोअंतर्दृष्टि का विकास होता है और मानसिक शांति व स्वास्थ्य में अभिवृद्धि होती है। जबकि दूसरी तरफ, अपरिपक्व, न्यूरोटिक, साईकोटिक मनोरक्षा-युक्तिया जो कि विकृत व रुग्ण होती हैमनोअंतर्दृष्टि को क्षीण करते हुए अवसाद, ओ.सी.डी., उन्माद व स्किजोफ्रिनिया जैसी गंभीर मनोरोग का कारण बन सकती है।


रविवार, 14 अक्तूबर 2012

गुलाबबाड़ी - हमारा फैज़ाबाद

फैज़ाबाद - सन् 1880 में ली गयी गुलाबबाड़ी के सामने वाले दर की एक दुर्लभ तस्वीर।
यह फोटो है गुलाबबाड़ी दर (Gate), फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत की, जो मुगलकालीन सत्र 1880 में ली गयी थी। ये दर (Gate) गुलाबबाड़ी से चौक की तरफ जाने पर मिलता है। इसमें दोनों किनारे वाले रास्ते अब बंद हो चुके हैं। सिर्फ बीच वाला रास्ता ही अब खुला है। इसी तरह से हमारी धरोहर धीरे-धीरे ख़त्म होती जा रही है। जिसे बचाने के लिए हमलोग कुछ नहीं कर पा रहे हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें की ऐसे ही दर (Gate) चौक के चारों ओर आज भी बने हुए देखें जा सकते हैं। जो आज जर्जर हालत में पहुँच चुके हैं। कभी इनके इर्द-गिर्द लंबी चार दीवारी हुआ करती थी जिसके आज सिर्फ अवशेष ही बचे हैं। लगता हैं कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को धरोहर के नाम पर कुछ भी नहीं दें पाएंगे।

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

स्किज़ोफ्रिनिया : कल्पनालोक में जीने का मनोरोग।

विलक्षण प्रतिभा भी हो सकती है स्किज़ोफ्रिनिया का शिकार 'विश्व स्किज़ोफ्रिनिया दिवस'- 24 मई, पूरी दुनिया में इस गंभीर मनोरोग के प्रति जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से मनाया जाने लगा है
      सिनेमा में रूचि रखने वाले लोगो को सन 2001 में बनी हालीवुड की फिल्म "ए ब्यूटीफुल माइंड" याद होगी ऑस्कर अवार्ड जीतने वाली यह फिल्म नोबल पुरस्कार विजेता 'जान नैश' नामक अर्थशास्त्री के जीवन पर आधारित है, जो स्किज़ोफ्रिनिया नामक मानसिक रोग के शिकार हो चुके है भारत की पहली टेलीफोनिक साइकोथिरेपी सेवा मनदर्शन हेल्पलाइन 09453152200 से एकत्र डाटाबे के आधार पर विलक्षण प्रतिभा और स्किज़ोफ्रिनिया में सह-सम्बन्ध जानने के लिए स्किज़ोफ्रिनिया से ग्रसित उन लोगो पर पश्चगामी अध्ययन किया गया जो कभी आसाधारण प्रतिभा के धनी थे। इस अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला कि विलक्षण प्रतिभा के लोग भी आगे चलकर इस गंभीर मनोरोग का शिकार हो सकते है। इस अध्ययन के डाक्यूमेंट्री रिसर्च का हवाला देते हुए 'मनोशोधक डॉ. आलोक मनदर्शन' ने बताया कि अपने समय कि कुछ नामचीन हस्तिया जिन्होंने विज्ञान, कला, साहित्य आदि में अदभुत प्रतिभा का लोहा मनवाया, उन्हें भी आगे इसी बीमारी का शिकार होना पड़ा गुजरे वक़्त कि मशहूर अदाकारा 'परवीन बाबी' की मृत्यु भी इसी रोग से हुई है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हर एक असाधारण व्यक्ति स्किज़ोफ्रिनिया से ही ग्रसित हो, बल्कि यह मनोरोग किसी भी आम या ख़ास को हो सकता है
      केस-स्टडी, लक्षण : 'स्किज़ोफ्रिनिया' से ग्रसित व्यक्ति के मन में एक या अनेक झूठे विश्वास या भ्रान्ति इस गहरे तक बन जाती है कि अनेको सही तर्क दिए जाने पर भी वह अपने काल्पनिक विश्वासों को असत्य नहीं मानता है उदहारण के लिए स्किज़ोफ्रिनिया से ग्रसित कोई महिला चिथड़ो से बने बण्डल को अपना बच्चा समझ सकती है और किसी काल्पनिक व्यक्ति को उसका पिता। इसी तरह कोई रोगी हमेशा अपनी मुट्ठियों को इस भ्रान्ति से बांधे रह सकता है कि मुट्ठी खोलते ही कुछ अनर्थ हो सकता है ऐसे रोगी अपने दंपत्ति या प्रेमी की निष्ठां के प्रति भी शक या वहम बना सकता है। जिससे उसका दांपत्य या प्रेम जीवन छिन्न-भिन्न तो होता ही है, साथ ही इसकी परिणति हिंसक घटना के रूप में भी हो सकती है। ऐसे रोगी यह भी काल्पनिक विश्वास कर सकते है कि उनमे अलौकिक शक्ति आ गई है जिसे दूसरे लोग नहीं जानते
      मनोगतिकीय कारक: 'स्किज़ोफ्रिनिया' से ग्रसित रोगी अपने कल्पना लोक से इतना आत्मसात होने लगता है कि वह खुद से बाते करना, हँसना, क्रोधित होना, अजीबो-गरीब मुद्रा बनाना जैसी असामान्य हरकते करने लगता है उसके मन में तमाम प्रकार के शक व् वहम इस प्रकार घर कर लेते है कि वह अपने करीबियों व् परिजनों से भी खतरा महसूस करने लगता है तथा उसे यह भी महसूस हो सकता है कि उसके दिमाग को लोग पढ़ ले रहे है और विभिन्न शक्तियों के माध्यम से उसके दिमाग को नष्ट करने की साजिश हो रही है। फिर वह अपने बचाव हेतु कर्मकाण्ड, तंत्र-मंत्र आदि शुरू कर सकता है तथा जहर दे कर मार दिए जाने के शक में खाना पीना तक छोड़ सकता है एवं असुरक्षा की भावना और बढ़ने पर वह घर छोड़ कर भाग सकता है या खुद को कमरे में कैद कर सकता है
      मनोविश्लेषण: मनदर्शन डाटाबे से एकत्र स्किज़ोफ्रिनिया के विभिन्न लक्षणों को सारांश रूप में 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' ने शक्की व झक्की के रूप में परिभाषित किया है डॉ. मनदर्शन ने यह भी बताया कि ऐसे मरीजो की अपनी मनोरुग्णता के प्रति अंतर्दृष्टि लगभग शून्य होती है जिससे की वे खुद को मनोरोगी मानने को तैयार नहीं होते है तथा वास्तविक दुनिया से अलग थलग अपने झूठे विश्वास या भ्रान्ति की दुनिया को ही सही मानते है स्किज़ोफ्रिनिया रोगी को अजीबो-गरीबो आवाजे सुनाई पड़ती है और असामान्य दृष्य भी दिखाई पड़ सकते है जिन्हें वह वास्तविक समझता है जबकि सच्चाई यह होती है कि मरीज का बीमार मन ही ऐसी आवाजे व दृष्य पैदा करता है यही कारण है कि स्किज़ोफ्रिनिक मरीज आसानी से जादू-टोना, तंत्र-मन्त्र आदि के अन्धविश्वास में भी फंस जाते है और उनके परिजन भी जागरूकता की कमी के कारण इसे मनोरोग के रूप में नहीं समझ पाते
      उपचार व पुनर्वास : मरीज के शुरूआती लक्षणों को पहचान कर उसका समुचित मनोउपचार करना चाहिए तथा उनमे आत्मविश्वास व दूसरो पर विश्वास करने को प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे की उसमे स्वस्थ अंतर्दृष्टि एवं कल्पनालोक से इतर व्यावहारिक जीवन जीने की जिवेष्णा का विकास हो सके। मरीज से उनके असामान्य व्यवहार की प्रतिक्रिया सकारात्मक ढंग से करना चाहिए न की हिंसक या मार-पीट के द्वारामरीज के सामाजिक व्यवहार व मनोरंजक क्रियाकलापों का बढ़ावा देना चाहिए
मनो-अद्ध्यात्म्विद: डॉ. आलोक मनदर्शन'

क्या हम दो - हमारे दो को कानूनी जामा पहनाना होगा ?

आज हम लगभग सवा अरब के करीब पहुंच चुके हैं फिर भी आपस में होड़ लगी है कि कौन आगे है? पर हम शायद यह नहीं जानते कि हमारी बढ़ती आबादी भी कहीं न कहीं हमारे विकास में सबसे बड़ी बाधक है।
आज हमारा भारत विश्व के मानचित्र पर शायद दूसरे या तीसरे नंबर पर हो पर आबादी में, क्योंकि आज भी हम अपने देश को अगर कुछ दे पा रहे हैं तो वह है जनसँख्या वृद्धि जो की हमारे लिए ही कहीं न कहीं घातक सिद्ध हो रही है और आगे और भी होगी।
क्या हमने कभी सोचा है कि आज हम जिस महंगाई, आर्थिक समस्या, विकास, युद्ध, अपराध, भ्रष्टाचार आदि जैसी महत्वपूर्ण समस्याओं से जूझ रहे हैं, उसके पीछे मुख्य कारण कौन है वह है हमारे देश की निरंतर तेज़ी से बढ़ रही जनसंख्या सिर्फ कहने को हम साक्षर हैं परन्तु बच्चे पैदा करने में हम निरक्षर हो जाते है हमने एक स्लोगन बनाया था  बहुत दिन पहले हम दो हमारे दो पर हम जब ख़ुद ही दो से ज़्यादा होने की सोचते हैं तो हमारे दो तो अपने आप ही तीन - चार से ज्यादा हो जायेंगे।
इन सबके पीछे सबसे मज़े की बात तो यह है की हम एक दुसरे पर आरोप  लगाते  नज़र आते हैं की वह गलत है, हमने किया तो क्या गलत किया हिन्दू कहता  है  कि अगर मुसलमान ज़्यादा बच्चे पैदा कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं। वहीं मुसलमान  कहता है कि हमारा तो धर्म ही हमें इसकी इजाज़त देता है परन्तु  दोनों यह नहीं जानते  की दोनों ही गलत हैं और उनकी यह गलती उन्हीं के लिए हानिकारक हैआज हमारी सरकार जनसँख्या वृद्धि को रोकने के लिए साल में अरबों रूपये ख़र्च कर रही है जिसके अंतर्गत कई महत्व पूर्ण ज्ञान दाई योजनायें सरकार द्वारा चलाई जा रही है परन्तु मुझे तो लगता है कि साल में ख़र्च होने वाला यह रूपया व्यर्थ ही जाता हैक्या आपको नहीं लगता की देश की जनसँख्या वृद्धि रोकने के लिए हमें रूपये ख़र्च करने की ज़रूरत हैमेरे हिसाब से यह तो हर व्यक्ति को खुद से सोच कर और इस पर अमल करते हुए देश की बढ़ती जनसंख्या को रोकना चाहिए।
मेरा मानना है की अगर आज हमारे देश की बढ़ती जनसँख्या पर अंकुश लगेगा तो हम शीघ्र ही एक ऐसी  प्रगति की ओर बढ़ने लगेंगे जिसके बारे में आज हम सिर्फ सोंच सकते हैं और अन्य देशों को उसकी तरफ बढ़ते देखते है।
जनसँख्या नियंत्रण से हमें अपने ही देश में फ़ैली अराजकता मंहगाई ख़राब अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने में बल मिलेगा।
हर भारतवासी को यह प्रण लेना होगा की हमारे दो ही बच्चे हों चाहे वह लड़का हो या लड़की तभी हम तेज़ी से बढ़ती जनसँख्या को रोक पाने में सक्षम होंगे वरना आने वाले समय में हमें भी अपने कुछ पड़ोसी मुल्कों की तरह संविधान द्वारा कानून बनाना पड़ेगा जो हमें दो बच्चे ही पैदा करने पर बाध्य करता रहेगा।
पर यदि हम इस विषय पर खुद से अमल करना शुरू कर दें तो ज़्यादा अच्छा रहेगा !

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

व्यक्तित्व-विकार के प्रति अर्न्तदृष्टि शून्यता लोगों को बना रही मनोरोगी


स्वस्थ मन ही सुन्दर मन है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) अपने मन का आत्मनिरीक्षण करके अपने व्यक्तित्व विकारों व मानसिक विकृतियों को सक्रिय रूप से पहचानने के उद्देश्‍य से पूरी दुनिया में मनाया जाता है। 10 अक्टूबर, अपने मन में मौजूद मानसिक व व्यक्तित्व विकारों को सक्रिय रूप से पहचानने का दिवस है, जिससे कि हमारा स्वस्थ्य व सुन्दर मानसिक पुनर्निमाण हो सके और आज विश्‍व-व्यापी महामारी का रूप ले रही मानसिक विकृतियों के फलस्वरूप अराजकता, हिंसा, आत्महत्या, अनैतिकता, संवेदनहीनता एवं आपराधिक प्रवित्तियों से कुरूप हो चुके तथा मानसिक बीमारियों से पीड़ित विश्‍व समाज स्वस्थ व खूबसूरत बन सके।

आज समूचे विश्व की दो-तिहाई आबादी किसी न किसी प्रकार के व्यक्तित्व-विकार या मानसिक-विकृति से ग्रसित हो चुकी है, जिसकी परिणति अल्प, मध्यम व गम्भीर मानसिक रोगों के रूप में हो रही है। स्वस्थ व सुन्दर मन के वैश्विक मिशन के प्रति समर्पित मनदर्शन मिशन द्वारा विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) की पूर्व संध्या पर जारी निदानात्मक-शोध (Prognostic-Research) रिपोर्ट मे इस तथ्य को उजागर किया गया है कि व्यक्तित्व-विकारों के प्रति अर्न्तदृष्टि की कमी लोगों को तेजी से मनोरोगी बना रही है।

पिछले 3 वर्ष के दौरान किये गये इस षोध के पश्‍चगामी-अध्ययन (Retrospective-study) में 30 हजार मानसिक रोगियों में पहले से मौजूद व्यक्तित्व-विकार (Personality-Disorder) तथा वर्तमान में उसके मानसिक रोगी होने के बीच 95 प्रतिशत विश्वसनीयता स्तर (95% Confidence Level) पर प्रबल धनात्मक सह-सम्बन्ध (Strong Positive Co-relation) पाया गया। साथ ही अन्य 1.3 लाख उन लोगों पर, जो अभी मानसिक रोग की चपेट में नहीं आये हुए थे, पर हुए अग्रगामी-अध्ययन (Prospective-Study) में पाया गया कि उनमें कुछ न कुछ व्यक्तित्व विकार कम या ज्यादा रूप में मौजूद है और वे अपने व्यक्तित्व विकार के बारे में पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। इस शोध में हर उम्र, लिंग व सामाजिक स्तर के लोग शामिल हैं।

'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' ने इनकी व्यक्तित्व-विकार के प्रति अनभिज्ञता को अर्न्तदृष्टि शून्यता (Insight-Blindness) के रूप में परिभाषित किया है। इसके कारण लोग अपने बनाये तर्कों के आधार पर अपने व्यक्तित्व को सही ठहराने की कोशिश करते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि ऐसे लोगों का व्यक्तित्व-विकार बढ़ते-बढ़ते मानसिक बीमारी का रूप ले लेता है

मनदर्शन-मिशन द्वारा वर्ष 2009 में शुरू हुई विश्‍व की प्रथम खूबसूरत मन प्रतियोगिता’ की शुरूआत इसी उद्देश्‍य से की गई कि आम आदमी को मन की गूढ़ प्रक्रियाओं से अवगत कराया जा सके ताकि वह अपने मन में मौजूद मानसिक व व्यक्तित्व विकारों को सक्रिय रूप से पहचान सके, जिससे उसका स्वस्थ्य व सुंदर मानिसिक पुनर्निमाण हो सके और आज विश्‍वव्यापी महामारी का रूप ले रही मानसिक विकिृतियों के फलस्वरूप बढ़ रही अराजकता, अनैतिकता, संवेदनहीनता एवं आपराधिक प्रवित्तियों से कुरूप हो चुका विश्‍व समाज स्वस्थ व खूबसूरत बन सके।

यदि आप भी अपने किसी न किसी प्रकार के व्यक्तित्व-विकार या मानसिक-विकृति से ग्रसित होने की जाँच करना चाहते है तो  मनदर्शन हेल्पलाइन +919453152200 डायल करे

'मनो-अद्ध्यात्म्विद: डॉ. आलोक मनदर्शन'

रविवार, 7 अक्तूबर 2012


क्या आप जानते हैं? कि देश के सबसे मंहगे क्षेत्र नई दिल्ली के औरंगजेब रोड पर 200 करोड़ वाला बंगला, 8 करोड़ की मैबेक कार, 22 करोड़ का फाल्कन जेट विमान, 4 करोड़ का कोबरा हैलीकाप्टर, 55 हजार का गब्बाना का सूट, 22 हजार के दाऊद के जूते, 722 लाख का वरतू (सिग्नेचर) मोबाइल, 2 लाख का थुराया सेटेलाइट फोन, 1.5 करोड़ की टामी स्विस डायमंड रिस्टवाच, 6 हजार रुपये का अरमानी का अण्डरवियर और बनियान (जो बिल गेट्स जैसे लोग पहनते हैं), 2 लाख का सिग्नेगिब्सा की 20 मिली वाला परफ्यूम आता है।

क्रमश:

शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

रिश्तों से बड़ी शराब

      रोज़ शाम होते ही सारे दोस्त इकट्ठा होने लगते हैं। और आपस में शाम रंगीन करने की बात करने लगते हैं। पर मेरे पहुँचते ही सुनील कहता है कि लो आ गये महात्मा जी अभी लेक्चर देंगे और सबका मूड ऑफ करेंगे कपिल कहता है कि न तो पीते हैं और अगर हम न्जॉय करना चाहते हैं तो ये उसमें भी अपनी टांग अड़ाते हैं
      जी हाँ आप सोच रहे होंगे कि मैं यह कोई कहानी सुना रहा हूँ, पर ये कहानी लगभग हर जगह दोस्तों के ग्रुप में शराब पीने को लेकर दोहराई जाती है। जिसमें हर शाम शराब पीने वाले हर दोस्त को न पीने वाला दोस्त समझाता नज़र आता है
      आज शराब पीने की आदत ने हमारे कई भाइयों व दोस्तों के घर को उजाड़ दिया है चाहे वह अमीर हो या ग़रीब  शराब रोज़ाना एक नए अपराध को जन्म देती है। और जब सुबह नशा उतरता है तो अपराधी को बहुत ही पछतावा होता है  और शराब न पीने की तमाम कसमें खाने लगता है परन्तु आने वाली शाम उसे हर कसम भूलने पर मजबूर कर देती है। और पीछे घट चुकी घटना की नई शराब की बोतल के साथ अँधेरे में खो जाने पर मजबूर कर देती है।
     
      आज हमारे देश के नौजवान शराब पीने को अपना शौक तो मानते ही हैं साथ ही उसे स्टेटस सिम्बल मानना भी अपनी शान समझते है
     
      आपको ध्यान होगा की पीछे मैंने कहा था  की  मेरे आते ही---इससे मेरा मतलब है की आज भी लगभग हर पीने वाले ग्रुप में कोई न कोई न पीने वाला दोस्त भी होता है जो पीने वाले दोस्तों को पीने के बाद सँभालने और होश में आने पर दोबारा न पीने के लिए समझाने का काम करता है, पर शराब! वो तो दोस्ती रिश्ते सबको दांव पर लगाकर हमेशा अपनी ही जीत की ख़ुशी मनाती नजर आती है अधिकतर शराब पीने वालों के जीवन में बीवी- बच्चे माँ-बाप भाई-बहन से भी ज्यादा करीबी रिश्ता शराब से ही होता है। जो उनके जीवन को सभी रिश्तों से दूर करके एक नया रिश्ता दिखाता नज़र आता है पर रास्ता कहाँ जा रहा है यह न पीने वाला जानता है और न शराब जानती है
      अक्सर  आपने देखा होगा की पीने वाले लोग एक दुसरे को दोष देते नज़र आते हैं की साले को बहुत मना  किया की आज नही पीने का मूड है पर साला माना ही नहीं ज़बरदस्ती पिला दी पर मैं ज़बरदस्ती जैसे शब्द पर बहुत कम ही यकीं करता हूँ क्योंकि क्या कोई ज़बरदस्ती करेगा अगर हम ज़बरदस्ती करवाना न चाहें
      आज हमारे देश को शराब की बिक्री से बहुत फायदा है। पर सारा नुकसान तो वे झेलते है जो शराबियों के करीब होते हैं। अब वे चाहे उनके दोस्त या रिश्तेदार हो या फ़िर अपने पूरे होशोहवाश में उनके नज़दीक से गुज़रने वाले लोग
      मेरा मानना है की आज अगर शराब पीने वाले शराब पीना छोड़ दें तो कई दोस्त-दोस्तों पर अपना विश्वास जमा लेंगे खुद को कमज़ोर समझने वाली पत्नियों को एक नई ताक़त मिलेगी बूढ़े माँ-बाप को एक सहारा मिलेगा साथ ही बेबस मासूम बच्चों के चेहरे पर एक पर एक नई ख़ुशी होगी परन्तु क्या ये सब इतना आसान है, इसका जबाब तो एक शराब पीने वाला ही दे सकता है
      हमारे देश के कई राज्यों में शराब बंद होने से राज्यों को आर्थिक नुकसान तो ज़रूर हुआ है परन्तु कितने घरों के चिराग बुझने से पहले फिर से रोशन हो गए हैं जो अपने परिवार को एक नई दिशा देने में आज अपना पूरा योगदान दे रहे हैं।

अब फ़ैसला आपके हाथ में है की शराब अपनी है की रिश्ते।

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