सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

आस्था व अंधविश्वास के सूक्ष्म-भेद का राज़फाश

मनदर्शन-लीक्स मनदर्शन मिशन के मनोखोजी लेंस मनदर्शनलीक्सने आस्था व अंधविश्वास के सूक्ष्म-भेद का जनहित में खुलासा कर दिया है। आपके मन की आस्था आपके आध्यात्मिक व मानसिक संबल और शांति के लिए एक आवश्यक मानसिक भोजन है। आस्था एक तरह की मनोरक्षा-युक्ति है जो आपको तनाव, द्वन्द, व फ्रस्टेशन दूर करने में तो मदद करता ही है साथ ही आपके मन में खूबसूरती व मानसिक स्वास्थ्य का संचार करती है। मनदर्शन मनोविश्लेषकीय फाउन्डेशन द्वारा जारी आस्था के मनोजैविक पहलू का विश्लेषण करते हुए मनदर्शन अन्वेषक 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' बताते है कि आस्था वह मनोदशा है जिससे आपके मस्तिष्क में एंडोर्फिन व आक्सीटोसिन नामक रसायनों का स्त्राव बढ़ जाता है तथा तनाव बढ़ाने वाले रसायन कार्टिसोल काफी कम होने लगता है जिससे हमारे मन में स्फूर्ति, उमंग, उत्साह व आत्मविश्वास का संचार होता ही है, साथ ही सम्यक मनोअंतर्दृष्टि का भी विकास होता है। परन्तु अति पूजा-पाठ व धार्मिक अनुष्ठान में अतिलिप्तता एक तरह की मानसिक अस्वस्थता व मनोविकृति का लक्षण हो सकता है जिसका लगातार एक्स्पोसर अंतर्दृष्टि-शून्यता की तरफ ले जा सकता है जिससे आप अवसाद, उन्माद, ओसीडी व स्किजोफ्रिनिया जैसे मनोरोग से ग्रसित हो सकते है। वैज्ञानिक आध्यात्मिकता का हवाला देते हुए मन-गुरु ने बताया कि अध्यात्म व आस्था का मूल उद्देश्य आपको अपने मन की गहराइयों में ले जाना है जिससे कि आपकी मनोअंतर्दृष्टि का विकास इस प्रकार हो सके कि आप अपने मन के स्वामी बन सके तथा आपका मन दैवीय-प्रदर्शन करने वाले व खुद को ईश्वरीय शक्तिधारी बताने वाले तत्वों के चंगुल में न फंस सके। समाज में ऐसे तत्व भोले-भाले आम इन्सान के मन से इस प्रकार खेलते है कि तमाम अवसाद, हिस्टीरिया, ओसीडी, उन्माद व स्किजोफ्रिनिया से ग्रसित लोग इनके द्वारा झाड़-फूक के नाम पर तमाम शारीरिक यातनाये झेलते है तथा उनके परिवारीजन भी अज्ञानता वश इनसे प्रभावित होकर मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को इनके हवाले कर देते है। जबकि सच्चाई यह है कि ऐसे तत्व या तो शातिर दिमाग ठग होते है या वे खुद मानसिक रूप से बीमार होते है।
सूक्ष्म मनोगतिकीय विभेद: स्वस्थ व परिपक्व मनोरक्षा-युक्ति आपको सम्यक आस्था व आध्यात्मिकता की तरफ ले जाता है जिससे मनोअंतर्दृष्टि का विकास होता है और मानसिक शांति व स्वास्थ्य में अभिवृद्धि होती है। जबकि दूसरी तरफ, अपरिपक्व, न्यूरोटिक, साईकोटिक मनोरक्षा-युक्तिया जो कि विकृत व रुग्ण होती हैमनोअंतर्दृष्टि को क्षीण करते हुए अवसाद, ओ.सी.डी., उन्माद व स्किजोफ्रिनिया जैसी गंभीर मनोरोग का कारण बन सकती है।


2 टिप्‍पणियां:

  1. 'आस्था को अन्धविश्वास न बनने दें' मनदर्शन का लेख पढ़ने का सौभाघ्य प्राप्त हुआ। युगांतारकारी इस लेख से कट्टर पंथियो को एक सबक लेना ज़रूरी है। वास्तव में आस्था किसी की जागीर नहीं है । क्योंकि वे स्वम इस हकीकत को जानते हैं कि 'सब का मालिक एक है'। मैंने इस्लाम से एक मात्र अल्लाह पर भरोसा, ईसाई धर्म से सेवा-भावना,सिक्खों से गुरु महत्ता और हिंदुओं से श्री राम,महात्मा बुद्ध एवं महाबीर के त्याग व तपस्या का पाठ पढ़ा है। इसलिए उसकी आस्था की कश्ती उस साहिल पर लगाने की छूट मिलना चाहिए जहाँ उसे परम आनंद प्राप्त हो सके।इस पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।

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