बुधवार, 14 नवंबर 2012

“खतरे में बचपन” बढ़ रही है उद्दंड व फिसड्डी बच्चो की भीड़

गर्भकालीन-तनाव का नतीजा : उद्दंड व फिसड्डी बच्चे। 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' उद्दंड, फिसड्डी व अराजक बच्चो की भीड़ बढ़ रही है | इसके पीछे माताओं का गर्भ काल में अति अवसाद में रहता है। ऐसे बच्चे मेडिकल भाषा में अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर (ADHD) से ग्रसित है। हाल में कराये गये एक सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले है।
मनदर्शन संस्था द्वारा 50 हजार माताओं व बच्चो पर किये गये सर्वेक्षण के बाद जो नतीजा सामने आया है उसके अनुसार गर्भवती माताएं किन्हीं कारणों से अवसादग्रस्त रहीं। 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' बताते है कि ऐसा बच्चा स्थिर नहीं रहता। सामान इधर-उधर फेंकता रहता है। जरा-जरा सी बात में तोड़-फोड़ करता रहता है। मारपीट पर उतर आता है। खुद को चोटिल कर लेता है। हर वक़्त बक-बक करता रहता है। बड़ों जैसी बाते करता रहता है। आपके समझाने व डांट-डपट का कोई असर नहीं पड़ता। पढाई में मन नहीं लगता और अनचाही चीजो को बहुत जल्दी याद कर लेता है। शरारतें, शिकायतों के बाद पिटाई से भी उसपर कोई असर नहीं पड़ता। यह डिसऑर्डर लड़के व लड़कियों में समान रूप से पाया गया है। भारत की पहली टेलीफोनिक साइकोथेरेपी सेवा ‘मनदर्शन’ हेल्पलाइन 09453152200  से सम्पर्क में आये ऐसे हजारों अभिभावकों ने अपने बच्चों में ऐसे लक्षणों का होना बताया है। अभिभावकों से बातचीत के दौरानइन बच्चों की माताओं ने गर्भकालीन तनाव व अवसाद होने की स्थिति को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से स्वीकार किया। इस प्रकार ADHD बच्चे (अति चंचल बाल व्यवहार)माँ के गर्भकालीन तनाव में 95 प्रतिशत विश्वसनीयता स्तर  (कान्फीडेंस लेबल) पर सबल धनात्मक सह-सम्बन्ध (स्ट्रांग पाजिटिव को-रिलेशन) पाया गया है। साउथ-एशिया के पहले मनोखोजी लेंस ‘मनदर्शनलीक्स’ द्वारा तैयार इस शोध रिपोर्ट के माध्यम से ऐसे बच्चों के व्यवहार पर जल्द से जल्द ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दिया गया है ताकि समय रहते मनोउपचार से उसके व्यवहार को नियन्त्रित कर स्वस्थ मानसिक स्थिति में लाया जा सके। साथ ही उनमे स्थिरता व एकाग्रता विकसित हो सके ताकि उनकी मानसिक उर्जा का सदुपयोग उनकी पढाई-लिखाई व अन्य रचनात्मक कार्यों में किया जा सके। ध्यान न देने पर ऐसे बच्चों के आगे चलकर उद्दंड, फिसड्डी, अनैतिक, आपराधिक, व असमाजिक गतिविधियों में लिप्त होने की आशंका बनी रहती है | ‘मनदर्शनलीक्स’ के संस्थापक 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन' ने अफ़सोस जाहिर करते हुए बताया कि दुर्भाग्य की बात यह है कि अभिभावक ऐसे बच्चे के इस व्यवहार को नजरअंदाज करते जाते है कि आगे चलकर वह अपनेआप ठीक हो जायेगा, पर होता बिलकुल इसके विपरीत है।
बचाव : गर्भकाल के दौरान माताएं किसी प्रकार के तनाव की स्थिति से बचे तथा पूरी नींद के साथ खुशहाल एवं मनोरंजन गतिविधियों को प्राथमिकता दें तथा मनदर्शन की थर्ड आई व ब्लैक आई मनोगातिकीय अभ्यास करे।
उपचार : बच्चों के शुरूआती लक्षणों को जल्द से जल्द पहचान कर मनोचिकित्सक से सलाह लेकर उपचार करायें तथा मनदर्शन की शांत मुद्रा उपचार का अभ्यास करवाए |

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