रविवार, 4 नवंबर 2012

हमें निरक्षर साबित करते सांप्रदायिक झगड़े

मैंने BA किया है, मैंने MA किया है, मैं MBA कर रहा हूँ, मैं तो IAS की तैयारी कर रहा हूँ। ये सब लोग कहते तो जरूर हैं परन्तु इतना सब कुछ करने के बाद भी हम अनपढ़ ज़ाहिलों की तरह किसी भी छोटी सी बात पर एक दूसरे को मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं।
पता नहीं क्यों धर्म-जाति के नाम पर हमलोग आवेश में आकर लड़ाई-झगड़ा शुरू कर देते हैं जो की हमारे पढ़े-लिखे ज़ाहिल होने को दर्शाता है। आज भी हमारे यहाँ होने वाले सम्प्रदायिक झगड़े हमारी निरक्षरता को दर्शाते हैं और हमें किताबी ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं।
आखिर हम धर्म और आस्था के नाम पर कब तक लड़ते रहेगें मैं कहता हूँ कि धर्म और आस्था के नाम पर झगड़ा शुरू करने वाले निरक्षर हैं, परन्तु उसे आगे बढ़ाने वाले तो साक्षर हैं। परन्तु मेरे हिसाब से उनसे बड़ा निरक्षर कोई नहीं हैं जो ऐसे लड़ाई-झगड़ो को रोकने की बजाय आगे बढ़ाने का कार्य करते हैं।
अगर आगे भी इसी तरह हम सम्प्रदायिक झगड़ों को बढ़ावा देते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हम विश्व के मानचित्र पर पूर्णतः निरक्षर साबित होते नजर आयेगें।

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