रविवार, 2 दिसंबर 2012

विश्व एड्स दिवस पर जानिये एच.आई.वी./एड्स के मनोदुष्प्रभाव

विश्व एड्स दिवस पर जानिये एच.आई.वी./एड्स के मनोदुष्प्रभाव : "पोस्ट डायग्नोसिस डिप्रेशन " व "एड्स डिमेंशिया" ‘विश्व एड्स दिवस’ पर ‘एच.आई.वी./एड्स’ के शारीरिक लक्षणो एवं बचाव के तौर तरीको की प्रचार-प्रसार माध्यमो से भरमार देखने को मिलती है | लेकिन इस बीमारी के छिपे-रुस्तम व अनछुए मनोदुष्प्रभाव को मरीज़ तथा उसके परिजनों को जागरूक करने के उद्देश्य से मनदर्शन-मिशन द्वारा उजागर कर दिया गया है | भारत की पहली टेलीफोनिक साइकोथिरैपी सेवा +919453152200 शुरू करने वाली ‘मनदर्शन-मिशन’ के अनुसार सामान्यतयः, मानसिक विछिप्त या मनोरोगी उसके मष्तिष्क के मनोरसायानो ( न्यूरो-ट्रांसमीटर्स ) में उत्पन्न असंतुलन का परिणाम होते है | परन्तु, एच.आई.वी./एड्स के मरीजो में इस वायरस के उनके मस्तिस्क में प्रवेश कर जाने से उनकी सामान्य मानसिक प्रक्रियाये इस प्रकार दुष्प्रभावित हो जाती है जिससे कि वे पागलपन जैसी असामान्य स्थिति में आ सकते है | इसे "एड्स डिमेंशिया" कहते है | साथ ही एच.आई.वी./ एड्स का मरीज़ एच.आई.वी. जाँच के पॉजिटिव आते ही उसके मन में "सेकेंडरी डिप्रेशन" या "पोस्ट डायग्नोसिस डिप्रेशन" (पी.डी.डी.) आ जाने की प्रबल संभावना हो जाती है जिससे कि उसका मन अपराध बोध,हताशा,निराशा व कुंठा जैसे नकारात्मक मनोभावों से घिर सकता है | मरीज़ को इस अवसाद ग्रसित मनोदशा से निकालने के लिए डॉ. मनदर्शन ने एच.आई.वी./ एड्स पीड़ित मरीज़ की समाज में पूर्ण स्वीकार्यता एवं भावनात्मक प्रोत्साहन पर विशेष जोर दिया है जिससे कि मरीज़ का पुनः मनोसामाजिक पुनर्वास हो सके और वह आत्मसम्मान के साथ समाज की मुख्य धारा में समाहित होकर अपने मनोशारीरिक उपचार में सकारात्मक ढंग से सहयोग कर सके |

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