फैज़ाबाद, 2 दिसम्बर 2012 ‘‘उपद्रवियों का कोई मजहब नहीं होता और
साम्प्रदायिकता का कोई धर्म नहीं। सभी प्रबुद्ध नागरिकों को सद्भाव का
प्रचार-प्रसार करना चाहिए। फैज़ाबाद की साम्प्रदायिक घटनाओं के बाद बुद्धिजीवियों
में एक तरह की इख़लाकी पस्ती दिखायी पड़ती है। हमें इस निराशा से निकलकर
धर्मनिरपेक्षता और सद्भाव के लिए संघर्ष करना चाहिए।’’ ये
विचार स्थानीय तरंग सभागार में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित भारतीय
परिवेश में सद्भावना और धर्मनिरपेक्षता की प्रासंगिकता और हमारे दायित्व विषयक
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए लेखक एवं संपादक आफताब रजा रिजवी ने व्यक्त किये।
यह संगोष्ठी फैज़ाबाद में पिछले दिनों हुई साम्प्रदायिक घटनाओं के बरक्स सद्भाव और
धर्मनिरपेक्षता के प्रचार’प्रसार के लिए आयोजित की गयी थी।
इससे पहले गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए सम्पूर्णानन्द
बागी ने कहा कि हमारा देश अपनी प्रकृति में धर्मनिरपेक्ष है, मगर थोड़े से उपद्रवियों को चलते
धर्मसमभाव का ताना-बाना अव्यवस्थित हो जाता है। शहर के जाने-माने शायर साहिल भारती
ने कहा कि सद्भावना पैदा करना प्रशासन की भी ज़िम्मेदारी है जबकि प्रशासन ने ही
फैजाबाद में लापरवाही दर्शायी है। युवा कवि विशाल श्रीवास्तव ने यह बताया कि
साम्प्रदायिकता के तत्व भारतीय समाज में पहले से सक्रिय रहे हैं। वैश्वीकरण के
प्रारम्भ होने के बाद फाँसीवाद का उदय बिल्कुल नये तरीके से हुआ है। मशहूर शायर
इस्लाम सालिक ने कहा कि इन साम्प्रदायिक घटनाओं में प्रशासन भी शामिल हो जाता है
जिससे साम्प्रदायिकता की योजनाबद्ध घटनाएँ और अफवाहें खतरनाक रूप ले लेती हैं।
समाजवादी पार्टी के नेता और एडवोकेट मंसूर इलाही ने कहा कि साम्प्रदायिकता फैलाने
वाले लोग कम हैं मगर उनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही नहीं होती जिसके कारण
साम्प्रदायिक तत्वों का मन बढ़ जाता है। उन्हें सख्त सजा दिलायी जानी चाहिए। बस्ती
से आये राजनारायण तिवारी ने फैज़ाबाद की घटनाओं को शर्मनाक बताते हुए कहा कि
वैश्वीकरण के आने के साथ ही साथ साम्प्रदायिकता बढ़ी है। एटक के नेता जमुना सिंह
ने बाजारवाद और उसकी संस्कृति को साम्प्रदायिकता के उभार के लिए जिम्मेदार माना।
भारतीय प्रेस कौंसिल के सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार सम्पादक
शीतला सिंह ने कहा कि 2012 की स्थितियाँ 1992
की स्थितियों से अधिक खतरनाक और निराशा पैदा करने वाली हैं। आज
राजनीति साम्प्रदायिक विभाजन को बढ़ा रही है । दुख की बात यह है कि पढ़ा-लिखा समाज
भी कम्युनल होता जा रहा है। शहर के जाने माने बुद्धिजीवी गुलाम मोहम्मद ने कहा कि
हमारे दौर में अवांक्षित तत्व सबल होते जा रहे है। लोगों को तोड़ने वाले नहीं,
जोड़ने वाले तत्वों का साथ देना चाहिए। शिक्षक नेता अशोक कुमार
तिवारी ने फैजाबाद की घटनाओं को एक राजनीतिक साजिश बताते हुए सद्भावना और भाईचारे
कायम रखने में सहयोग करने के लिए बुद्धिजीवियों को आगे आने के लिए कहा। राजनायण
तिवारी ने कहा कि फैज़ाबाद की सारी घटनाओं के पीछे स्पष्टतः चुनावी राजनीति थी।
युगलकिशोर शरण शास्त्री ने साझी संस्कृति और साझी विरासत को बचाने की बात कही।
सुपरिचित पत्रकार सुमन गुप्ता ने कहा कि 1992 की घटनाओं के बाद लेाग निश्चिन्त हो
गये कि भविष्य में फैज़ाबाद में साम्प्रदायिक घटनाएँ नहीं होंगी। मगर
साम्प्रदायिकता नये तरीके से सामने आयी है। धर्म को अपने साथ लपेटने वाली राजनीति
के तहत उपद्रवियों को सजा नहीं मिलती और उनका हौसला बुलन्द हो जाता है। कामरेड
रामतीर्थ पाठक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वामपंथी हमेशा से
साम्प्रदायिकता का विरोध करते रहे हैं। हर धर्म के प्रगतिशील बुद्धिजीवियों को
धार्मिक विकृतियों और साम्प्रदायिकता का विरोध करना चाहिए। गोष्ठी का संचालन कर
रहे डॉ रघुवंशमणि ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों को लेकर जनता के बीच जाने की
आवश्यकता है।
गोष्ठी मे यह संकल्प लिया गया कि साम्प्रदायिक सद्भाव के
ये कार्यक्रम दूर-दराज के गांवों तक ले जाये जायेंगे। गोष्ठी के अन्त में भारतीय
कम्युनिष्ट पार्टी के महासचिव रामजीराम यादव ने गोष्ठी में आये अतिथियों को
धन्यवाद देते हुए आभार व्यक्त किया। गोष्ठी में कामरेड अतुल कुमार सिंह, कामरेड रामप्रकाश तिवारी, हृदयराम निषाद, इर्तिजा हुसैन, सईद ख़ान, अयोध्या प्रसाद तिवारी, रामकुमार सुमन, बद्रीनाथ यादव, महंथ दिनेश दूबे, मुन्नालाल सहित सैकड़ों लोग
उपस्थित थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
इस लेख को पढ़ने के बाद आपके दिल-दिमाग में जो भी बातें आयीं उसे टिप्पणी के रूप में यहाँ जरूर बताएँ।