शनिवार, 8 सितंबर 2012

कहीं हम भी तो भ्रष्ट नही !

आज हमारे देश में हर कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम छेड़ रखा है, जहाँ कहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ बात होती है वहाँ हर इन्सान भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होने की बात स्वीकारता नज़र आता है, पर क्या आपने कभी सोचा है कि जिस भ्रष्टाचार को हम जड़ से मिटाने की बात कर रहे हैं कहीं उसमें हम भी तो लिप्त नहीं है, जी हाँ  हम भी हैं। पर यह हम कभी अपने मुहँ से स्वयं को नहीं कह सकते क्योकि हमारी आत्मा हमारा ज़मीर हमें कभी भ्रष्ट मानने के लिए नहीं स्वीकारेगा, हाँ दूसरे को हम भ्रष्ट कह सकते है, क्योंकि उसके अन्दर की कमियां उसके अन्दर छिपा भ्रष्ट चेहरा हमे तुरंत दिखाई पड़ जाता है, परन्तु हमारे अन्दर का भ्रष्टाचार जो हमें नहीं दिखाई देता।
मेरा तो मानना है की समाज का हर व्यक्ति भ्रष्टाचार में लिप्त है और वह भ्रष्ट भी है, परन्तु क्या आप इसे स्वीकार करेगें? भ्रष्टाचार का अर्थ क्या है? न ही आप को ठीक ढंग से पता है, और न ही मुझे, मेरे हिसाब से वह हर कार्य भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है जिसे हम अपनी सुख-सुविधा के लिए दूसरे को तकलीफ में डालकर करते हैं।
आज के इस आधुनिक युग में हमारी जरूरतें इतनी ज्यादा बढ़ चुकी है की हम हर जगह जिन्दगी में शार्टकट ही ढूंढते नज़र आते हैं, सिर्फ अपनी सुख सुविधाओं के लिए, जिससे हम आगे तो बढ़ते है पर हमारा रास्ता गलत होता है। हम तमाम जगहों पर विरोध-प्रदर्शन, अनशन, सत्याग्रह आन्दोलन जैसे हथकंडो द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम  तो छेड़ते है परन्तु उस मुहीम  को कितना सफल बना पाते है, यह तो आप जानते ही हैं, आखिर क्यों? क्योंकि कहीं न कहीं हम स्वयं भी भ्रष्ट है, हम और आप एक ग्राम प्रधान से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक को भ्रष्ट कहने में संकोच नहीं करते  पर आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि अगर आज हमारे देश के नेता भ्रष्ट है तो उसके पीछे कारण कौन है? कोई दूसरा नहीं स्वयं हम उन्हें भ्रष्ट बनाने के ज़िम्मेदार हैं, बस अंतर इतना है की वो बड़े भ्रष्ट है और हम छोटे।
आप सोच रहे होंगे की ये तो सरासर इल्ज़ाम है। जी हाँ एक बार आप इसे इल्ज़ाम ही मानकर अपने ऊपर लेकर तो देखें आपकी आत्मा खुद ही यही कहेगी कि तुम गलत हो, और वह गलत रास्ता तुम सिर्फ अपनी जरा सी सुविधाओं के लिए अपनाते हो जो तुम्हारे साथ-साथ कईयों को भ्रष्ट की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देता है, कुछ लोग तो गलत ढंग से कमाए जाने वाले पैसे को ही सिर्फ भ्रष्ट की श्रेणी में मानते है, परन्तु मेरे हिसाब से पैसा गलत ढंग से कैसे आया? गलत काम करके, इसलिए वह हर गलत काम जो अपनी सुख-सुविधाओं के लिए किया जाता है वह भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है, भ्रष्टाचार पर रोक लग सकती है, इसे पूरी तरह समाप्त किया जा सकता है परन्तु न किसी आन्दोलन से न सत्याग्रह से, न ही विरोध-प्रदर्शन से इसे समाप्त करने के लिए हमारे देश में हर छोटे-बड़े, गरीब और अमीर नागरिक को अपनी सुख-सुविधाओं के लिए शार्टकट रास्तों को बंद करके, नियम और सिस्टम के अनुसार चलना होगा, सही को सही और गलत को गलत मानना होगा, सभी को एक निगाह से देखना होगा तभी जाकर इस भ्रष्टाचार रुपी राक्षस का खात्मा हो पाएगा।

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