शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

"डिसाइडो-फोबिया" से बचे छात्र व अभिभावक : मनदर्शन मिशन

"डिसाइडो-फोबिया" से बचे छात्र व अभिभावक : मनदर्शन मिशन
"कैरियर कांफ्लिक्ट" का ही हिस्सा है 'डिसाइडो-फोबिया' ! : मनदर्शन रिपोर्ट

 कैरियर चुनने का समय छात्र-छात्राओं तथा उनके अभिभावकों के लिए एक दुविधा व असमंज़स  की स्थिति लेकर आती है | जो कि प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाओं के शरू होने से लेकर नतीजे आने तक ही नहीं, बल्कि किसी कैरियर विशेष में प्रवेश ले लेने के बाद तक भी बरकरार रहती है| विभिन्न कैरियर नतीजों में सफल होने के बाद छात्र एक साथ कई कैरियर विकल्पों में दाखिला लेने के मानसिक द्वन्द में रहते है,जिससे उनका मन एक बार किसी एक कैरियर स्ट्रीम की ओर घुकाव पैदा करता है, तो दुसरे ही पल कोई दूसरी स्ट्रीम आकर्षक लगती है |

लगभग यही स्थिति अभिभावकों की भी होती है | रही-सही कसर पास-पड़ोस, या अन्य मिलने जुलने वालो की बिन मांगी सलाह पूरी कर देती है| कुल मिलाकर यह स्थिति एक ऐसे मकडजाल के रूप में उलझ जाती है कि छात्र व अभिभावक ऐसे मानसिक द्वन्द व तनाव से गुजरने लगते है| जिससे उनमे गलत फैसला ले लेने का भय, असमंजस व उलझन, अनिद्रा, चिडचिडापन, सरदर्द तथा फैसला ले लेने के बाद पछतावे के मनोभाव जैसे लक्षण उभर कर सामने आ सकते है| इस मनोदशा को "मनदर्शन मिशन" द्वारा "डिसाइडो-फोबिया" ( निर्णय लेने में भय ) के नाम से परिभाषित किया गया है|

दुष्परिणाम :-
इसका दुष्परिणाम यह होता है कि छात्र अपने समग्र मानसिक एकाग्रता से अपने चुने हुवे कैरियर पर फोकस नहीं कर पाते है क्योकि उनकी मानसिक उर्जा का एक बड़ा हिस्सा अनमनेपन या पछतावे में व्यर्थ होता रहता है | मनदर्शन हेल्पलाइन से संपर्क में आये ऐसे तमाम छात्रों व अभिभावकों को "डिसाइडो-फोबिया" नामक इसी मानसिक द्वन्द से ग्रसित होना पाया गया है |

बचाव :-
मनदर्शन मिशन अन्वेषक 'डॉ.आलोक मनदर्शन' का कहना है कि "डिसाइडो-फोबिया" से बचने के लिए जरूरत इस बात की है कि एक बार ले लिए गए निर्णय को पूरी सकारात्मकता व स्वीकार्यता से आत्मसात किया जाए तथा मन में चलने वाले अन्यथा व नकारात्मक मनोभावों व विचारों पर ध्यान न देकर पूरी लगन व चाहत से वर्तमान निर्णय के क्रियान्वयन पर जुट जाना चाहिए| छात्र की अभिरूचि एवं क्षमता का निरपेक्ष मूल्यांकन, संसाधनों व परिस्थितियों से सामंजस्य, अति उत्साह व भावुकता में निर्णय ले लेने से बचना, अभिभावकों द्वारा अपनी इच्छाओं को छात्र पर जबरिया न थोपना व सम्यक निर्णय ले लेने के बाद नकारात्मक प्रतिक्रियाओं पर ध्यान न देना | इस सुझावों पे अमल करने से "डिसाइडो-फोबिया" से बचा जा सकता है|

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस लेख को पढ़ने के बाद आपके दिल-दिमाग में जो भी बातें आयीं उसे टिप्पणी के रूप में यहाँ जरूर बताएँ।

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...